हेलो दोस्तों आज आप पढ़ने वाले है kahaniyan acchi acchi क्यूंकी इसी तरह की बच्चों की कहानियां अच्छी अच्छी पढ्न खास कर के बच्चो को बहुत अच्छा लगता है और बच्चों की कहानियां अच्छी अच्छी पढ़ने से बच्चे बहुत ही अच्छा महेसूस करते है और साथ ही आप पंचतंत्र की 101 कहानियां pdf भी पढ़ सकते है ये भी बहुत मज़ेदार और सीख देने वाली बच्चों की कहानियां अच्छी अच्छी कहानिया होती है ।
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उच्च शिक्षा ( kahaniyan acchi acchi )
कहानियां अच्छी अच्छी
एक गांव में धनीराम नाम का एक जमींदार रहता था उसका एक लड़का था जिसका नाम राजू था। धनीराम के पास बहुत सारी ज्यादा थी और बहुत सारा धन भी था यह बात उसके लड़के राजू को पता थी इसलिए वह पढ़ाई में मन नहीं लगाता था।
कहानियां अच्छी अच्छी
एक दिन धनीराम अपने बेटे से कहेता है। बेटा राजू तुम अपना ध्यान पढ़ाई में क्यों नहीं लगाते तो उस पर उसका बेटा कहता है कि पिताजी हमारे पास कितनी दौलत है और पढ़ाई करके तो नौकरी हासिल की जाती है ना मुझे नौकरी करने की क्या जरूरत हमारे पास पहले से ही इतनी सारी जायदाद है।
यह बात सुनकर धनीराम कहते हैं बेटा नौकरी के लिए पढ़ाई नहीं की जाती बल्कि पढ़ाई तो ज्ञान हासिल करने के लिए की जाती है और बुद्धिमान बनने के लिए की जाती है ताकि हम उस बुद्धिमानी से अपने जीवन में और तरक्की कर सकें।
लेकिन यह बात राजू को समझ में नहीं आती और वह अपने पिता के बात पर ध्यान नहीं देता और इसीलिए उसके पिता उसका बहुत गुस्सा करते हैं और उसे मारते भी रहते हैं यह सब होने के बाद राजू अपने पिता का बहुत गुस्सा करने लगा और अपने पिता से नफरत करने लगता है।
एक दिन धनीराम अपनी बीवी से कहता है कि मुझे अपने बेटे के संबंधित बहुत फिक्र हो रही है क्योंकि वह अपना मन पढ़ाई में नहीं लगाता और दिन भर घूमता रहता है और उसे लगता है कि उसके पिता के पास बहुत दौलत है और उस बदौलत की वजह से वह जिंदगी भर आराम से रहेगा उसे नौकरी करने की और पढ़ाई करने की कोई जरूरत नहीं है।
यह सुनकर धनीराम की पत्नी कहती है कि गलती हमारी है हम नहीं इसमें बचपन से लड़ पाए से पाला है और इसका बदला हमें अब भुगतना पड़ रहा है। ( kahaniyan acchi acchi )
धनीराम यह सुनकर बहुत निराश हो जाता है लेकिन उसकी पत्नी कहती है कि मैंने सुना है हमारे पड़ोस में एक विद्वान लाए हैं जो बच्चों को उच्च शिक्षा देते हैं हमें चाहिए कि हम राजू को भी उन विद्वान के पास भेजें ताकि वहां पर उच्च शिक्षा प्राप्त करें और जिंदगी में कुछ बड़ा करें।
यह सुनकर धनीराम कहता है ठीक है कल शुभम राजू को उस विद्वान के पास छोड़ कर आ जाएंगे और उसकी मां राजू से कहती है कि तुम्हें कल उस विद्वान के पास जाना है क्योंकि हमने यह तय किया है कि तुम उसके पास जाकर उच्च शिक्षा हासिल करोगे यह सुनकर राजू खुश हो जाता है क्योंकि वह उसके पिता से दूर जाना चाहता था और अपने घर से भी।
दूसरे दिन राज्यों के माता-पिता उसे विद्वान के घर छोड़ कर आते हैं विद्वान की एक पत्नी और छोटा बेटा होता है। जैसे ही विद्वान को पता चलता है कि जमींदार का बेटा उसके पास शिक्षा हासिल करने के लिए आ रहा है तो वह अपनी पत्नी से भी यह बात कहता है और उसके पत्नी कहती है कि हमारा बेटा भी अब बड़ा हो रहा है उसे भी आपकी शिक्षा की जरूरत है। ( kahaniyan acchi acchi )
कहानियां अच्छी अच्छी
राजू अपनी शिक्षा पर बिल्कुल ध्यान नहीं देता इससे भी दुआ बहुत नाराज हो जाते हैं और उसे हर वक्त आते रहते हैं राजू को यह बात पसंद नहीं आती के विद्वान उसे हर बैठे रहते हैं।
कहानियां अच्छी अच्छी
एक बार विद्वान और उसकी बीवी शादी में कहीं बाहर जा रही होती है और विद्वान राज्यों से कहते हैं कि मेरे छोटे बेटे को मैं तुम्हारे पास छोड़कर जा रहा हूं तुम इसका ध्यान रखना और अपनी आज की पूरी पढ़ाई पूरी करें इसका ध्यान रखना नहीं तो यह पढ़ाई के बजाय खेलकूद में ना लग जाए। ( kahaniyan acchi acchi )
राजू उस लड़के को समझाता है क्यों खेलकूद ना करें बल्कि पहले पढ़ाई करें फिर फिर खुद करें लेकिन वह लड़का मानने को तैयार ही नहीं होता और अपने खेलकूद में लगा रहता है गुस्से में आकर राजू उस लड़के को जोर से थप्पड़ मार देता है थप्पड़ खाने के बाद लड़का चुपचाप पढ़ाई करने लगता है लेकिन थप्पड़ की वजह से उसका गाल पूरा लाल हो जाता है।
कहानियां अच्छी अच्छी
जब विद्वान और उसकी पत्नी घर आती है तो उसका लड़का कहता है कि मुझे राजू ने थप्पड़ मारा और मेरा पूरा गाल सूज गया यह सुनकर उसकी पत्नी बहुत बड़ा जाती है और उससे कहती है कि तुमने क्या किया हमने तो मैसेज में जारी सौंपी थी लेकिन तुम नहीं से थप्पड़ मार दिया।
यह सुनकर राजू कहता है कि मैंने अपनी जिम्मेदारी निभाई है यह पढ़ाई नहीं कर रहा था इसलिए मैंने उसे थप्पड़ मारा अब वह पढ़ाई कर रहा है।
विद्वान अपनी पत्नी से कहता है किसने सही किया है एक समझदार व्यक्ति का और एक शिक्षक का काम ही होता है कि वह अपने शिष्य को समझाएं पढ़ाई चाहे उसके लिए उसे डांटना पड़ेगा मरना पड़े यह सुनकर राजू को समझ आ जाता है उसके पिता उसे क्यों डांट रहे होते हैं और यह विद्वान उसे क्यों डांट रहे होते हैं।
कहानियां अच्छी अच्छी
राजू विद्वान से कहते हैं मुझे क्षमा कीजिए मुझे पता ही नहीं था कि आप और मेरे पिता मेरे ही भले के लिए निवेदन रहे थे आपसे मैं बहुत दिल लगाकर पढ़ाई करूंगा और अच्छी शिक्षा उच्च शिक्षा हासिल करूंगा। ( kahaniyan acchi acchi )
उस दिन के बाद वह मन लगाकर अपनी शिक्षा पर ध्यान देता है और अपनी शिक्षा पूरी होने के बाद अपने गांव वापस जाता हैं और अपने पिता के कारोबार संभालता है और एक जिम्मेदार व्यक्ति बन जाता है।
लालची डाकिया ( कहानियां अच्छी अच्छी )
शहर से बहुत दूर एक छोटा सा गांव था जिसका नाम सूरजपुर था सूरजपुर में टेलीफोन के सुविधा अभी तक नहीं आई थी इसीलिए वहां पर डाक भेजने का अभी भी काम शुरू था और लोग एक दूसरे को डाक भेजा करते थे।
उन के गांव में एक डाकिया था जिसका नाम धरमू था । धरमू बहुत ही ईमानदार इंसान था वो गांव वालो को बहुत मदद किया करता था और उन के साथ बहुत ही अच्छे से रहा करता था।
एक दिन धरमू अपने साइकल पर जा रहा था तभी एक घर में डाक देने के लिए रोका उसे घर में से शीला मौसी बाहर आई और धर्म से कहा तुम तो हर हफ्ते मुझे टाइम पर डाक लाकर दे देते हो इसका मुझे तो शुक्रिया अदा करना चाहिए इस पर धर्म कहता है नहीं नहीं यही मेरा काम है और यह कहकर वह आगे डाक बांटने के लिए चला जाता है।
आगे जाकर धरमू एक और डाक देता है घर में से एक औरत बाहर आती है और कहती है मेरे पति तो फौज में है और तुम्हारे डाक के जारी है मेरी उनसे बात हो पाती है तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद यह कह कर धर्म कहता है यह तो मेरा सौभाग्य है जो मुझे इस काम का अवसर मिला है और यह कहकर धरमू वहां से चला जाता है।
जब धरमू अपनी साइकिल से डाक बाट कर घर जा रहा था तभी उसे रास्ते में एक पेड़ के नीचे मनीष बैठा हुआ दिखा मनीष एक गांव में रहने वाला आदमी था जो खेती-बड़ी करके अपना गुजर बसर करता था वह बहुत ही उदास और गमगीन नजर आ रहा था।
मनीष को उधर देखकर धरमू से कहता है क्या हुआ मनीष भाई तुम इतने उदास और गमगीन क्यों लग रहे हो यह सुनकर मनीष कहता है मेरी मां बीमार है और शहर के अस्पताल में है मेरी बीवी उनके पास है और उनके पास पैसे भी खत्म हो गए हैं मुझे उन्हें एक खत लिखना है और उन्हें पैसे भी भेजने हैं लेकिन मेरे को तो खत लिखना ही नहीं आता तुम्हें अपना डाक कैसे शहर भेजूंगा अस्पताल में।
यह सुनकर धरमू कहता है तो मैं किस लिए हूं लो मैं तुम्हारा खत लिख देता हूं और तुम्हारे पैसे भी खत के साथ शहर में अस्पताल में पहुंचा देता हूं यह सुनकर मनीष बहुत खुश हो गया और मनीष को लिखते नहीं आता था इसीलिए धरमू ने मनीष का खत लिख कर दिया लेकिन खत पर ऐड्रेस मनीष नहीं डाला था और फिर धर्मो डाक और पैसे लेकर चला गया शहर को जाने के लिए और आगे डाकिया को दे दिया।
2 दिन गुजर जाते हैं और मनीष की मां को वह खत और पैसे नहीं मिलते। मनीष बहुत ही गुस्से से धरमू के पास पोस्ट ऑफिस जाता है और धरमू से कहता है मैंने तुम पर भरोसा करके अपना डाक और पैसे तुम्हारे पास दिया था लेकिन आज पूरे 2 दिन हो गए हैं तुमने कहा कि एक दिन में मेरा डाक और पैसे मेरी मां को मिल जाएंगे लेकिन दो दिन होने के बाद भी मेरी मां को पैसे नहीं मिले और ना ही डाक मिला।
यह सुनकर धरमू कहता है यह कैसे हो सकता है मैंने तो बराबर ही पहुंचा था और पहुंचने के लिए कहा था लेकिन यह सुनकर मनीष कहता है नहीं नहीं मेरे मन को अभी तक पैसे नहीं मिले यह सुनकर धरमू कहता है ठीक है दो दिन और इंतजार करो तुम्हारी मां को डाक मिल जाएगा।
मनीष एक हफ्ते इंतजार करता है एक हफ्ता है गुजर जाता है लेकिन फिर भी मनीष की मां को उसका खाट और पैसे नहीं मिलते अब मनीष समझ जाता है कि पैसे धरमू ने रख लिया है और यह वह गांव के सरपंच से जाकर कहता है गांव का सरपंच बड़े गुस्से में धरमू के पास जाता है और कहता है तुमने यह गलत किया है तुमने मनीष के मन को पैसे देने थे लेकिन तुमने खुद रख लिए अब तुम इस डाकघर में नहीं रह सकते तुम यहां से निकल जाओ।
यह सुनकर धरमू बहुत ही नाराज हो जाता है और बहुत ही गमगीन हो जाता है क्योंकि अभी तक उसने गांव के लिए बहुत ही इमानदारी से काम किया था लेकिन अभी कुछ गलती भी न होकर उसे गलती का भुगतान भरना पड़ रहा है।
दूसरे दिन को सामान लाने के लिए किराना दुकान में जाता है लेकिन किराना दुकान वाला धर्म को सामान देने से मना कर देता है वह कहता है तुम तो बहुत ही लालची इंसान हो और तुमने तो मनीष के पैसे ही खा लिए यह सुनकर धर्म को बहुत ही घुसा जाता है और वह अपने घर आ जाता है।
2 दिन भी चाहते हैं धरमू बगैर खाने पीने के अपने घर में बंद हो जाता है और किसी से बात नहीं करता फिर अगले दिन मनीष भागता हुआ गांव के सरपंच के पास पहुंचता है और कहता है मुझे बहुत बड़ी भूल हुई है।
सरपंच कहता है अरे क्या हुआ यह तो बताओ यह सुनकर मनीष कहता है धरमू भैया ने खत लिखा था लेकिन उसे पर एड्रेस मैंने डाला था और वह एड्रेस गलत था इसीलिए डाकिया एक हफ्ते तक उसे यहां वहां ढूंढता रहा और एड्रेस नहीं मिला तो उसने वापस डाक और पैसे मुझे लाकर दे दिए हैं धरमू भैया का इसमें कोई कसर नहीं है हमने बेवजह उन पर शक किया मुझे तो बहुत ही बुरा लग रहा है।
यह सुनकर सरपंच कहता है तुम्हारी वजह से तो हमने भी धर्म पर शक किया और सभी धरमू के घर जाते हैं घर जाकर देखते हैं तो धरमू दरवाजा बंद कर कर सोया हुआ होता है सभी धरमू का दरवाजा ठोकते हैं और बाद में धर्म एक बिस्तर पर पड़ा होता है और 2 दिन से उसने कुछ नहीं खाया तो बहुत ही गल जाता है ।
धर्म सरपंच जी से कहता है तुम यहां कैसे सरपंच जी कहते हैं हमें सच्चाई का पता चल गया है हम सभी तुमसे माफी मांगने आए हैं धर्म कहता है वह सब ठीक है पहले तुम यह खत जाकर आरती पहन कर दे कर आओ सरपंच कहता है क्यों यह खत किसका है धर्म कहता है भारतीय बहन का पति फौज में काम करता था लेकिन वह पिछले साल ही एक हमले से मारा गया।
और पिछले 1 साल से मैं उनके पति का खत ले जाकर देता हूं और वह खत में खुद ही लिखता हूं उन्हें अभी तक पता नहीं चला कि उनके पति मर चुके हैं। इसी वजह से वह अभी तक जिंदा है नहीं तो उनकी भी क्या हालत होती वह नहीं पता।
यह सुनकर सरपंच जी और सभी गांव वालों की आंखों में आंसू आ जाते हैं और सभी एक बार फिर धर्म से माफी मांगते हैं।
इसके बाद सरपंच जी धरमू को अस्पताल में लेकर जाते है और उसका इलाज करवाता है और सभी धर्म से माफी मांगते हैं।
और इसके बाद धरमू फिर से पूरे गांव में डाक बांटना शुरू कर देता है और सभी लोग उसे पर पहले की तरह ही भरोसा करते हैं।
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1 Comments
bahut hi acchi kahani hai
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