नटखट लोमड़ी की शरारत ( लोमड़ी की मजेदार कहानियां )
एक बार की बात है, ऊंचे पेड़ों और रंग-बिरंगे फूलों से भरे एक खूबसूरत जंगल में लोमडी नाम की एक चतुर और शरारती छोटी लोमड़ी रहती थी। लोमडी को जंगल की खोज करना और हर तरह के रोमांच में शामिल होना पसंद था। वह अपनी त्वरित सोच और चतुर चालों के लिए जानी जाती थीं।
एक धूप भरी सुबह, लोमडी मन में एक शरारती योजना लेकर उठी। वह अपने पशु मित्रों के साथ शरारत करना और उन्हें हँसाना चाहती थी। अपने चेहरे पर एक धूर्त मुस्कान के साथ, वह अपने पहले लक्ष्य की तलाश में, जंगल में दबे पाँव चल पड़ी।
लोमडी ने खरगोशों के एक समूह को एक बिल के पास खेलते हुए देखा। वह चुपचाप उनके पीछे चली गई और ज़मीन से आने वाली आवाज़ होने का नाटक किया। "नमस्कार, छोटे खरगोश! मैं महान बुरो आत्मा हूं। यदि आप तीन बार कूदते हैं, तो मैं आपकी तीन इच्छाएं पूरी करूंगा!" वह गहरी आवाज में बोली.
जिज्ञासु खरगोश आश्चर्य से एक-दूसरे की ओर देखने लगे और उत्साह से उछलने लगे। एक खरगोश गाजर की कामना करता था, दूसरा आरामदायक बिल की कामना करता था, और तीसरा दौड़ने वाले जूतों की तेज़ जोड़ी की कामना करता था। उनकी इच्छाएँ पूरी होते देखकर लोमडी खुशी से खिलखिला उठी।
अपनी चंचल होड़ को जारी रखते हुए, लोमडी जंगल की गहराई में चली गई और एक गिलहरी को व्यस्त रूप से मेवे इकट्ठा करते हुए पाया। लोमडी ने गिलहरी के पसंदीदा अखरोट के पेड़ की आवाज़ की नकल की और गिलहरी को बुलाया, "अरे, ऊपर देखो! वहाँ सभी स्वादों के अखरोट के साथ एक जादुई पेड़ है। इसे हिलाओ, और तुम्हें एक स्वादिष्ट दावत मिलेगी!"
जिज्ञासु गिलहरी ने ऊपर देखा और लोमडी को पेड़ होने का नाटक करते हुए एक शाखा पर बैठा देखा। गिलहरी उत्साह से ऊपर चढ़ गई और स्वादिष्ट भोजन की आशा में शाखा को हिलाने लगी। जब बलूत के फल गिलहरी के चारों ओर गिरे तो लोमडी हँसने से खुद को नहीं रोक सकी।
जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, लोमडी ने और अधिक शरारतें कीं और अपने वन मित्रों को खुशियाँ दीं। उसने गरजती हुई नदी की आवाज़ की नकल की, जिससे हिरणों का एक समूह काल्पनिक बाढ़ से दूर भाग गया। उसने खुद को एक बुद्धिमान उल्लू के रूप में प्रच्छन्न किया और भ्रमित कछुए को अजीब सलाह दी। लोमडी जहां भी जाती थी, हंसी और खुशी फैलाती थी।
लेकिन लोमडी के शरारती कारनामे सिर्फ मज़ाक तक ही सीमित नहीं थे। जरूरत पड़ने पर उसने अपने दोस्तों की भी मदद की। उसने खोए हुए पक्षियों को उनके घोंसलों में वापस पहुंचाया, जानवरों को आने वाले खतरों के बारे में चेतावनी दी, और अपना भोजन उन लोगों के साथ साझा किया जो भूखे थे।
जैसे ही सूरज डूबने लगा, लोमडी थकी हुई लेकिन संतुष्ट होकर अपनी आरामदायक मांद में लौट आई। वह शांतिपूर्ण नींद के लिए दुबक गई, यह जानते हुए कि वह उस दिन जंगल में मुस्कुराहट लेकर आई थी।
उस दिन के बाद से, जंगल के जानवरों को पता चल गया कि जब भी वे चंचल हंसी या चालाक आवाज सुनते हैं, तो यह शरारती लोमडी उनके जीवन में खुशी और आनंद लाती है।
और इसलिए, चतुर छोटी लोमड़ी ने यादगार और मनोरंजक रोमांच बनाना जारी रखा, जिससे वह जंगल की पसंदीदा चालबाज बन गई
शेर और लोमड़ी की मजेदार कहानियां
लोमड़ी और अंगूर की कहानी
लोमड़ी की मजेदार कहानियां
एक जंगल में एक बहुत ही शानदार अंगूर का बगीचा था। वहां हरा-भरा अंगूर घिरा हुआ था और वो बहुत मिठा और स्वादिष्ट था। इस बगीचे के बारे में सभी जानवर जानते थे, लेकिन जंगल के लोमड़ी को इसके बारे में कुछ पता नहीं था।
एक दिन लोमड़ी बगीचे के पास से गुज़र रही थी, तभी उसने अंगूर की खुशबू महसूस की। उसे अंगूरों की खुशबू बहुत पसंद आई और उसे खाने का मन करने लगा। लेकिन उसे अंगूर तक पहुंचने के लिए बड़ी ऊँचाई तक चढ़नी पड़ती थी।
लोमड़ी ने सोचा, "अगर मैं अंगूर को चढ़ जाऊँगी तो मैं उसे खा सकती हूँ।" वह ऊँचाई पर चढ़ने का प्रयास करने लगी, लेकिन उसे चढ़ने में बहुत मुश्किल हो रही थी।
लोमड़ी थक गई और बोली, "अह! यह बहुत मुश्किल है। यह अंगूर बहुत ऊँची जगह पर है, मुझे नहीं मिलेगा।"
लोमड़ी अंगूर के लिए तत्पर हो गई, लेकिन जब वह उसे प्राप्त नहीं कर सकी, तो उसने यह सोच लिया कि यह अंगूर उसे पसंद नहीं है। उसने बगीचे की ओर देखा और बोली, "वैसे भी, यह अंगूर ख़ास अच्छा नहीं लग रहा है।"
लोमड़ी अंगूर के बारे में ऐसा सोच रही थी कि यह उसे मिल नहीं रहा है, इसलिए उसने यह बयान कर दिया कि यह अंगूर उसे पसंद नहीं है।
यह सब देखते वाले जानवर चकित रह गए। वे जानते थे कि लोमड़ी के पास अंगूर प्राप्त करने के लिए पहुंचने की क्षमता नहीं थी, इसलिए उसने अंगूर को बदनाम कर दिया।
इस कहानी से हमें यह सबक मिलता है कि हमें किसी चीज़ के लिए ताकत और प्रयास करना चाहिए, इसके बदले में हमें उसे बदनाम करने की आवश्यकता नहीं है।शेर और लोमड़ी की मजेदार कहानियां
एक जंगल में एक बहुत बड़ा और ताकतवर शेर रहता था। उसकी दहाड़ से सभी जानवर डर जाते थे। लेकिन उसका दोस्त एक छोटी सी चालाक लोमड़ी थी। शेर और लोमड़ी अच्छे दोस्त थे और उन्हें एक-दूसरे की कहानियों से बहुत मज़ा आता था।
एक दिन शेर और लोमड़ी बैठ कर बातें कर रहे थे। शेर ने कहा, "लोमड़ी, मुझे अपनी ताकत दिखाओ। क्या तुम मेरे सामने एक बड़ी और मजबूत हड्डी निगल सकती हो?" लोमड़ी ने हँसते हुए कहा, "शेर भैया, आप तो बहुत ताकतवर हो, लेकिन ऐसा नहीं है कि आप हड्डी निगल सकें।"
शेर को बहुत गुस्सा आया। वह चाहता था कि लोमड़ी उसे दिखाए कि वह कितना ताकतवर है। शेर ने लोमड़ी को कहा, "अच्छा, फिर मैं दिखाता हूँ कि मैं यह हड्डी निगल सकता हूँ।" लोमड़ी ने हँसते हुए कहा, "ठीक है, शेर भैया, दिखाइए मुझे आपकी ताकत!"
शेर और लोमड़ी ने इकट्ठे होकर अपने दोस्तों को बुलाया। वे एक बड़ी गद्दी के पास खड़े हो गए। शेर ने जोर से गरजा और कहा, "ध्यान दें, मैं अब यह हड्डी निगल रहा हूँ!" लोमड़ी ने थोड़ा वक्त इंतजार किया और फिर अचानक चिढ़क दी।
शेर चकरा गया और बहुत गुस्से में बोला, "तुम यह कैसे कर सकती हो, लोमड़ी? तुमने मेरी ताकत को ठीक तरह से दिखा दिया!" लोमड़ी हँसी में भरी हुई थी और बोली, "शेर भैया, यह सिर्फ मेरा छोटा सा ट्रिक था। मुझे अच्छी तरह से पता था कि आप हड्डी नहीं निगल सकते हैं। हम अपने दोस्तों के साथ मस्ती कर रहे थे, आपकी ताकत पर मज़ाक करने के लिए।"
शेर भी हँसते हुए बोला, "तुम सचमुच मेरे दिल की बातें समझ सकती हो, लोमड़ी। तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो। तुम्हारी चालाकी और मस्ती मुझे हमेशा हंसाती है।"
शेर और लोमड़ी फिर से हंसने लगे और एक-दूसरे की कहानियों को सुनने लगे। वे दोनों जंगल में अद्वितीय और मजेदार दोस्ती का आनंद लेते रहे।
चालाक लोमड़ी कहानी
लोमड़ी की मजेदार कहानियां
एक जंगल में एक बहुत ही चालाक और बुद्धिमान लोमड़ी रहती थी। वह लोमड़ी बहुत ही अकाल्पनीय तरीकों से अपनी मस्ती करती थी और अपनी बुद्धिमानी का उपयोग करके अपने दोस्तों को हंसाती थी।
एक दिन, लोमड़ी अपने दोस्त बंदर को देखा जो बहुत परेशान दिख रहा था। लोमड़ी ने पूछा, "हे बंदर, तुम इतने परेशान क्यों हो?" बंदर ने गुस्से से कहा, "मेरा खाना मेरे लिए इतना मुश्किल हो गया है। यह झूलने वाली लकड़ी पे रहना बहुत खतरनाक हो गया है।"
लोमड़ी बहुत सोच रही थी और उसने अपनी चालाकी का उपयोग करने का फैसला किया। वह बंदर के पास गई और बोली, "मेरे पास एक बड़ा पेड़ है जिस पर बहुत सारे रसीले और स्वादिष्ट आम हैं। तुम वहां से आम खा सकते हो और अपनी भूख मिटा सकते हो।"
बंदर ने खुशी के साथ पूछा, "लेकिन कैसे पहुंचूं वहां लोमड़ी?" लोमड़ी ने गर्व से बताया, "ओह, बहुत ही आसान है! तुम यहां आओ और मेरे पीछे रहो। मैं तुम्हें उस वृक्ष की ओर ले जाऊंगी और तुम खुद ही अमने-सामने वृक्ष में चढ़ जाओगे।"
बंदर लोमड़ी की बात मान ली और दोनों ने वृक्ष की ओर चलना शुरू किया। बंदर ने लोमड़ी को धन्यवाद कहा और चढ़ जाने की तैयारी की। लेकिन लोमड़ी चिढ़ गई और अपनी पूंछ पीछे लहराते हुए बोली, "हे बंदर, देखो! वहां ऊँचाई बहुत ज्यादा है और मैं तो यहां तक ही चढ़ सकती हूँ। तुम खुद ही ऊँचाई पर जाओ और आम खाओ।"
बंदर बहुत खुश हुआ कि उसे खुद ही वृक्ष में चढ़ने का मौका मिला। वह उसी समय वृक्ष में चढ़ गया। लोमड़ी बहुत हंस रही थी, क्योंकि उसने बंदर को धोखा दिया था।
बंदर बहुत खातार गया और ऊँचाई से नीचे गिर गया। उसकी देखभाल करने के लिए लोमड़ी बाहर आई और बोली, "हे बंदर, यह बात सिखाने के लिए थी कि आपको दूसरों की बातों को जांचने की आवश्यकता होती है।"
बंदर ने समझ गया कि वह लोमड़ी के द्वारा धोखा दिया गया था। उसने लोमड़ी से कहा, "तुम बहुत ही चालाक हो, लोमड़ी। लेकिन मैं तुम्हें धोखा नहीं देने दूंगा।"
इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि बुद्धिमानी, चालाकी और विवेकपूर्ण सोच का उपयोग करके हम किसी भी स्थिति में अच्छा कर सकते हैं। हमें धोखा नहीं देना चाहिए और दूसरों की बातों को जांचने की क्षमता रखनी चाहिए।
story लोमड़ी और अंगूर की कहानी
लोमड़ी की मजेदार कहानियां
एक जंगल में एक खुशहाल लोमड़ी रहती थी। उसे खाने का शौक़ था और वह रोज़ाना जंगल के अन्य जानवरों के साथ खेलती थी। एक दिन, जब लोमड़ी खेल रही थी, उसे एक बहुत ही स्वादिष्ट और लाल रंग का अंगूर दिखाई दिया।
लोमड़ी ने अंगूर को देखा और मुस्कान के साथ बोली, "यह अंगूर बहुत ही मधुर और स्वादिष्ट लग रहा है। मैं इसे खाना चाहती हूँ।"
लेकिन जब लोमड़ी ने ऊँचे वृक्ष से अंगूर को छूने की कोशिश की, तो उसे चढ़ने में बहुत परेशानी हो रही थी। वह कितनी भी कोशिश कर ले, परंतु वह अंगूरों को छूने के लिए छोटी होती जा रही थी।
लोमड़ी थक गई और गुस्से से बोली, "मुझे यह अंगूर पसंद नहीं है। यह गाढ़ा और अजीब सा है। शायद यह मुझे ठीक से पचने वाला नहीं होगा।"
लोमड़ी अंगूर को नहीं पा सकी इसलिए उसने इसे नकार दिया। उसने अपनी मुस्कान और मस्ती लाने के लिए दूसरे खेल का आयोजन किया।
जंगल के दूसरे जानवर चोंक गए क्योंकि उन्होंने देखा कि लोमड़ी अंगूर को छूने के लिए बहुत संघर्ष कर रही थी, लेकिन वह उसे नहीं पा रही थी।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें हमारी इच्छाओं को हासिल करने के लिए पर्याप्त मेहनत और समर्पण की आवश्यकता होती है। हमें आसानी से हार नहीं माननी चाहिए और अपनी क्षमताओं का विश्वास रखना चाहिए
भूखी लोमड़ी कहानी / चालाक लोमड़ी कहानी इन हिंदी
लोमड़ी की मजेदार कहानियां
बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल में एक बहुत ही चालाक और बुद्धिमान लोमड़ी रहती थी। वह जंगल के सभी जानवरों में सबसे चालाक थी और उन्हें धोखा देने में माहिर थी।
एक दिन, लोमड़ी को भूख लगी और वह खाने की तलाश में घूमने लगी। वह बहुत सारे मुर्गे देखी, परंतु उनमें से कोई भी उसे पकड़ने से पहले उड़ जाता।
तभी लोमड़ी ने देखा कि एक मुर्गा बहुत खुश और गाने गा रहा है। लोमड़ी बहुत खुश हुई क्योंकि वह जानती थी कि वह मुर्गा उड़ नहीं सकता।
लोमड़ी ने एक योजना बनाई और उसने मुर्गे के पास जाकर कहा, "अरे मुर्गा भैया, तुम बहुत ही सुंदरता के साथ गाना गाते हो। मुझे बहुत अच्छा लगा। क्या तुम मुझे गाना सिखा सकते हो?"
मुर्गा खुश हुआ और उसने कहा, "जरूर, मैं तुम्हें गाना सिखा सकता हूँ, पर तुम्हें उड़ नहीं सकता।"
लोमड़ी ने चालाकी से कहा, "हाँ, हाँ, मुझे यही चाहिए। मुझे गाना सिखाओ और उड़ने की जरूरत नहीं है।"
दूसरे दिन, मुर्गा लोमड़ी को गाना सिखाने के लिए अपने पास बुलाया। लोमड़ी बहुत खुश थी क्योंकि उसने अपनी चालाकी से मुर्गे को फंसा लिया था।
मुर्गा ने लोमड़ी को कुछ गाने सिखाए और लोमड़ी ने बहुत मेहनत की और गाना सीख लिया। अंत में, लोमड़ी ने मुर्गे को धोखा देते हुए कहा, "तेरा गाना अच्छा नहीं है। मैंने सोचा था कि तू मुझे अच्छा गाना सिखाएगा, पर तेरे गाने की कोई क़ीमत नहीं है।"
लोमड़ी मुर्गे को धोखा देकर हँसी में लिपटी और वहाँ से भाग गई। उसने अपनी चालाकी दिखाई और खुद को बहुत ही होशियार समझा।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि चालाकी और बुद्धिमानी जरूरी है, परंतु दूसरों को धोखा देना सही नहीं होता। लोमड़ी को धोखा देने से उसका गर्व या खुशी नहीं बढ़ी, बल्कि उसने खुद को गलत साबित किया। हमेशा सच्चाई और ईमानदारी का पालन करना चाहिए और दूसरोंका सम्मान करना चाहिए।
चालाक लोमड़ी और कौवा की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक बड़े और सुंदर वन में एक चालाक और चतुर कौवा रहता था। कौवा जंगल के आस-पास के वृक्षों पर बसने आया करता था और उसका सबसे प्यारा वृक्ष आम का था।
एक दिन, लोमड़ी ने देखा कि कौवा अपने मुंह में एक सुंदर रंगीन ताजगी होली खाकर वृक्ष के ऊपर बैठी हुई थी। लोमड़ी की आँखें चमक उठीं और उसे चाहिए कि वह भी उस ताजगी को प्राप्त करे।
लोमड़ी ने एक चाल चली और कौवे के पास पहुंची। वह देखा कि कौवा गाना गाती हुई बहुत खुश दिख रही थी। लोमड़ी ने चालाकी से कहा, "नमस्ते, मैंने आपका गाना सुना और मुझे यह बहुत पसंद आया। क्या आप मुझे अपना गाना सिखा सकती हैं?"
कौवा उचित समय पर दिखाई दी और खुश होते हुए बोली, "जरूर, लेकिन मेरे पास एक शर्त है। तुम्हें उस पेड़ पर बुलाना होगा और उस पर मोती का हार जो सबसे सुंदर हो।"
लोमड़ी ने यह सुनकर अपनी चालाकी से कहा, "बिल्कुल, मैं वहाँ जा कर आपका गाना सिख लूंगी और आपको अपना ताजगी दूंगी।"
लोमड़ी चाल चली और एक बड़े पेड़ के नीचे खड़ी हुई, जहां कौवा बैठी हुई थी। वह बड़ी ऊँचाई से कौवे को बुलाने की कोशिश कर रही थी।
जब कौवा गाना गाने के दौरान अपनी आंखें बंद कर रही थी, तब लोमड़ी ने चालाकी से कहा, "अरे कौवा, तुम्हारा गाना इतना सुंदर है कि तुम पूरी दुनिया को देख नहीं सकती।"
कौवा बड़ी खुशी में उठ खड़ी हुई और गाना गाना बंद कर दिया। लोमड़ी अपनी चालाकी से एक उच्च डाल पर चढ़ गई, जहां उसे कौवे द्वारा छोड़े गए ताजगी की कला मिली।
लोमड़ी बहुत खुश हो रही थी क्योंकि उसने अपनी चालाकी द्वारा कौवे को धोखा दिया और अपना लाभ प्राप्त किया।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमेशा ध्यान रखना चाहिए और दूसरों के साथ सत्यता और ईमानदारी बरतनी चाहिए। हमेशा ध्यान देने से हम दूसरों के द्वारा बनाए गए योजनों से बच सकते हैं और सच्चाई को पहचान सकते हैं।
बकरी और भेड़िया की कहानी
लोमड़ी की मजेदार कहानियां
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटा गांव में एक प्यारी सी बकरी रहती थी। उसका दिल बहुत दयालु था और वह सभी जानवरों के साथ दोस्ती करना पसंद करती थी।
एक दिन, एक भेड़िया उसे देखकर बहुत ही खुश हुआ और वहाँ पहुंचा। भेड़िया का मुंह पानी से भर गया क्योंकि उसे बकरी खाने की बहुत ख्वाहिश थी। लेकिन वह बकरी के पास जाने से पहले उसे बहुत अच्छी तरह समझना था।
भेड़िया ने बकरी को अभिवादन किया और दृढ़ आवाज़ में कहा, "नमस्ते बकरी! मैं आपका नया दोस्त हूँ। मुझे आपसे एक बात पूछनी है, क्या आप मेरे साथ एक मजेदार खेल खेलेंगी?"
बकरी खुशी से मुस्कान देते हुए बोली, "ज़रूर, मुझे खेलना बहुत पसंद है! हम कौन सा खेल खेलेंगे?"
भेड़िया बहुत सोचने के बाद बोला, "चलो, हम पालतू खेलेंगे। मैं तुम्हारे पीछे दौड़ूंगा और तुम मेरे पीछे दौड़ोगी। अगर तुम मुझे पकड़ लेती हो, तो तुम जीत जाओगी।"
बकरी थोड़ी सोचने के बाद तैयार हो गई और खेल शुरू हो गया। भेड़िया बकरी के पीछे दौड़ने लगा और बकरी उसके पीछे दौड़ी। वे दौड़ते-दौड़ते बाहर के मैदान में पहुंच गए।
भेड़िया बहुत तेज़ दौड़ रहा था, परंतु बकरी उससे आगे निकल आई। वह तेज़ी से दौड़ती रही और जंगल के एक छोटे से खंडहर के पास पहुंची।
बकरी जानती थी कि वह खंडहर में छिपने से भेड़िया उसे नहीं पकड़ सकता है। भेड़िया खंडहर के सामने पहुंचा और खाली हाथ लौट गया।
बकरी बहुत खुश थी क्योंकि वह चालाकी से भेड़िया को मात दे गई थी। उसने सोचा कि अब से वह अपनी हरकतों को और दिल से देखेगी और धोखा देने की कोशिश नहीं करेगी।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमेशा सत्यता और ईमानदारी से रहना चाहिए। चालाकी और धोखाधड़ी लाभदायक नहीं होती हैं, बल्कि वे आपको आपकी सच्ची मित्रता से दूर करती हैं।
7 बकरियों की कहानी
लोमड़ी की मजेदार कहानियां
एक समय की बात है, ग्रामीण क्षेत्र में सुखी और हर्षित जीवन जीने वाले एक छोटे से गांव में सात बकरियां रहती थीं। वे सभी सखी बकरियां थीं और उनके प्रतिदिन की जिंदगी बहुत खुशनुमा गुजरती थी।
गांव में एक खेतीबाड़ी रहता था जिसका नाम रामचंद्र था। रामचंद्र बकरियों की देखभाल करता था और उन्हें हर रोज़ चारा खिलाता था। बकरियां उसके साथ खेलतीं, उसके पास आकर बहुत खुश रहतीं और वह उन्हें प्यार से बुलाता "ओई बकरियों!"।
एक दिन, गांव में एक तेज़ तूफान आया और सब जगह बहुत गरज-गड़ की आवाज़ होने लगी। रामचंद्र ने तुरंत अपनी सात बकरियों को अपने घर के अंदर ले जाने का निर्णय लिया क्योंकि गरजता हुआ तूफान उन्हें चोट पहुंचा सकता था।
घर में पहुंचते ही रामचंद्र ने देखा कि एक बकरी नहीं है। उसका नाम गौरी था। वह बाहर ही फंस गई थी। रामचंद्र ने दौड़ कर बाहर जाकर उसे बचाने के लिए प्रयास किया, लेकिन बाहर की तूफानी हवाओं के कारण वह गौरी को बचाने में असफल रहा।
गौरी आँसू बहाते हुए गरजते हुए तूफान में फंस गई। उसे लगा कि अब उसकी मौत संभव है। बचाने का कोई रास्ता नहीं दिखा। उसकी आंखों से आँसू बहते हुए उसने ऊपर देखा और मानो वहाँ उसकी बेहतरीन सखी हिमालय शेरनी सारिता खड़ी थी।
गौरी ने सारिता को देखते ही चिल्लाई, "ओई सारिता, कृपया मुझे बचाओ, मुझे बचाओ!"। सारिता धीरे-धीरे गौरी के पास आई और उसे आश्वस्त करते हुए बोली, "चिंता न करो गौरी, मैं तुम्हें बचाऊंगी। तुम मेरे पीठ पर चढ़ जाओ।"
गौरी भरोसे और उम्मीद के साथ सारिता की पीठ पर चढ़ गई। सारिता धीरे-धीरे घर की ओर चली। वह बहुत मेहनत कर रही थी क्योंकि तूफान के कारण आगे बढ़ना काफी मुश्किल था।
अंत में, सारिता ने बड़ी मेहनत से घर के बाहर पहुंची। गौरी को बचाने का कार्य सफल रहा था। रामचंद्र ने देखा कि सारिता अपनी सखी गौरी को सलामती से बचा लायी है। वह बहुत प्रसन्न हुआ और सारिता को धन्यवाद दिया।
इस कहानी से हमें यह सिखाई जाती है कि एक सच्चे मित्र कभी भी आपकी मदद के लिए आपके पास होता है। गौरी ने सारिता पर पूरा विश्वास किया और उसने उसे बचा लिया। हमेशा दोस्तों के साथ मेहनत करें और उनकी मदद करने के लिए तैयार रहें।
लोमड़ी और सारस की कहानी
एक समय की बात है, एक घने जंगल में एक चालाक लोमड़ी रहती थी। वह जंगल की सबसे बुद्धिमान और चतुर प्राणी थी। उसे आश्चर्यचकित करने के लिए वह अपनी मास्टरी चलाती और जंगल के अन्य प्राणियों को धोखा देती थी।
एक दिन, जब लोमड़ी चोरी करके भाग रही थी, उसने एक अत्यंत सुंदर सारस देखी। सारस जंगल के निकट के झील में रहती थी और उसकी खूबसूरत आवाज़ और नृत्य ने लोमड़ी को मोह लिया।
लोमड़ी, जो हमेशा चालाकी से प्रयास करती थी, उसने सोचा कि यदि वह सारस के साथ दोस्ती कर लेती है, तो उसे कुछ लाभ हो सकता है। इसलिए वह उसके पास गई और उसे स्नेहपूर्वक सलाम की योजना बनाई।
लोमड़ी ने सारस के पास जाकर कहा, "नमस्ते दोस्त! मैं आपकी आवाज़ और नृत्य के बारे में सभी की तारीफ़ सुनी है। क्या आप मुझे सिखा सकती हैं कि कैसे ऐसा करते हैं?"
सारस बहुत खुश हुई और बोली, "ज़रूर, लोमड़ी! मैं आपको यह सिखा सकती हूँ। आपको ध्यान रखना होगा कि आपकी आवाज़ में ताल की एकता होनी चाहिए और नृत्य के लिए आपको लगातार अभ्यास करना होगा।"
लोमड़ी ने सारस के नृत्य का अभ्यास किया और धीरे-धीरे उसमें माहिर हो गई। वे दोनों अद्भुत संगीत और नृत्य का आनंद लेते रहते थे। लोमड़ी ने एक नया दोस्त बनाया और सारस ने अपनी कला को बढ़ावा दिया।
जंगल के अन्य प्राणियों ने देखा कि लोमड़ी और सारस की दोस्ती बहुत मज़ेदार है और वे एक दूसरे के साथ बहुत खुश रहते हैं। इससे वे सभी को एक बड़ी सीख मिली - सच्ची मित्रता कभी चालाकी और धोखाधड़ी से ऊपर होती है।
इस कहानी से हमें यह सिखाया जाता है कि सच्ची मित्रता सिर्फ दिखावटी नहीं होती है, बल्कि वह एक अनंत खुशियों का स्रोत होती है। चालाक और भ्रमित होने की जगह, हमेशा ईमानदार और न्यायसंगतता का मार्ग चुनें।
बगुला और लोमड़ी की कहानी
Bagula aur lomdi ki kahani in Hindi
हाथी और भालू की कहानी
एक जंगल में एक बहुत बड़ा और मज़ाकिया हाथी रहता था। वह अपनी बड़ी आवाज़ और मज़ेदार हरकतों से सबका मनोरंजन करता था। उसे देखकर सभी प्राणी खुश हो जाते थे।
एक दिन, जब हाथी जंगल में घूम रहा था, तभी उसे एक भालू दिखाई दिया। भालू बहुत ही बड़ा और शांतिपूर्ण प्राणी था। हाथी उसके पास गया और पूछा, "हाय, भालू! तुम कैसे हो?"
भालू धीरे-धीरे उठा और बोला, "मैं ठीक हूँ, हाथी। धन्यवाद। तुम कैसे हो?"
हाथी ने जबाब दिया, "मैं भी बहुत अच्छा हूँ, भालू! मैं तो हमेशा मस्ती करता रहता हूँ।"
भालू ने कहा, "यह तो अच्छी बात है। लेकिन क्या तुम अपने खाने की चिंता नहीं करते?"
हाथी हंसते हुए बोला, "अरे नहीं, भालू! मेरे लिए खाना पाना आसान होता है। मैं जंगल के वृक्षों से अपना खाना तोड़कर खाता हूँ। जितना चाहें खा सकता हूँ।"
भालू ने सोचा कि यह काफी रोचक है। उसने हाथी से पूछा, "क्या तुम मुझे बता सकते हो कि कैसे तुम वृक्षों से अपना खाना तोड़ते हो?"
हाथी खुशी से बोला, "ज़रूर, भालू! मैं तुम्हें दिखा सकता हूँ।"
फिर हाथी ने भालू के साथ एक वृक्ष के पास जाकर खड़े हो गए। हाथी अपनी बड़ी और मज़ेदार सूंड़ लेकर वृक्ष को हिलाने लगा। धीरे-धीरे, वृक्ष से अंगूर टूटने लगे। हाथी और भालू ने अंगूर खाना शुरू किया और दोनों बहुत खुश रहे।
इस कहानी से हमें यह सिखाया जाता है कि हमेशा दूसरों से सीखने की कोशिश करें। हमें अपने दोस्तों की मदद करने और उनसे सहयोग मिलने का आदान-प्रदान करना चाहिए। जब हम एक-दूसरे की मदद करते हैं, तो हम सभी खुश रहते हैं और साथ में मज़े भी करते हैं।
लोमड़ी और अंगूर की कहानी की सीख
एक बार की बात है, एक खूबसूरत जंगल में लोमडी नाम की एक चालाक और चतुर लोमड़ी रहती थी। लोमडी अपनी शरारती चालों और त्वरित सोच के लिए जानी जाती थी। उसे जंगल घूमना और खाने के लिए स्वादिष्ट व्यंजन ढूंढना बहुत पसंद था।
एक धूप वाले दिन, जब लोमडी जंगल में घूम रही थी, उसे पके, रसीले अंगूरों से भरा एक हरा-भरा अंगूर का बगीचा मिला। अंगूर बेलों पर ऊंचे लटक रहे थे, सूरज की रोशनी में चमक रहे थे। स्वादिष्ट अंगूरों को देखकर लोमडी के मुँह में पानी आ गया।
अंगूरों का स्वाद चखने के लिए दृढ़ संकल्पित लोमडी ने छलांग लगाई और उन तक पहुंचने की कोशिश की। लेकिन चाहे वह कितनी भी ऊंची छलांग लगा ले, अंगूर हमेशा उसकी पहुंच से दूर थे। लोमडी ने बार-बार कोशिश की, लेकिन अंगूर हाथ नहीं आए।
हताश और निराश महसूस करते हुए, लोमडी पीछे हट गया और अंगूरों की ओर देखा। उसने खीझते हुए कहा, "ये अंगूर खट्टे होंगे और मेहनत के लायक नहीं होंगे। मैं उन्हें किसी भी तरह नहीं चाहती!"
लोमडी यह दिखाते हुए चली गई कि उसे अंगूरों की कोई परवाह नहीं है। उसने यह कहकर खुद को सांत्वना देने की कोशिश की कि अंगूर उसके समय के लायक नहीं थे। लेकिन अंदर ही अंदर, वह जानती थी कि वह सिर्फ अपनी निराशा को छुपाने की कोशिश कर रही थी।
जैसे ही लोमडी ने जंगल के माध्यम से अपनी यात्रा जारी रखी, वह मदद नहीं कर सकी, लेकिन उन अंगूरों के बारे में सोचने लगी जिन तक वह नहीं पहुंच सकी। उसने महसूस किया कि अंगूरों के लिए उसकी इच्छा ने उसके निर्णय को धूमिल कर दिया था और उसे कुछ ऐसा बना दिया था जो वह नहीं कर सकती थी।
लोमडी ने अंगूरों से जो सबक सीखा वह यह था कि जो चीज़ पहुंच से बाहर है उसका तिरस्कार करना या उसका अवमूल्यन करना आसान है। अपनी सीमाओं को स्वीकार करने के बजाय, उसने अंगूरों को अवांछनीय करार देना चुना। लोमडी समझ गई कि उन चीज़ों की सराहना और सम्मान करना महत्वपूर्ण है जो उसकी समझ से परे हो सकती हैं।
उस दिन से, लोमडी अधिक विनम्र और समझदार हो गया। वह अब अपनी इच्छाओं को अपने निर्णय पर पर्दा डालने नहीं देती या जो वह हासिल नहीं कर सकी उसे कमतर नहीं होने देती। उसने चीजों की सुंदरता और मूल्य की सराहना करना सीखा, भले ही वे उसकी पहुंच से परे हों।
लोमडी और अंगूर की कहानी हमें एक महत्वपूर्ण सबक सिखाती है - हमारे पास जो कुछ भी है उसके लिए विनम्रता और कृतज्ञता रखें और अपनी इच्छाओं को हमारे निर्णय पर हावी न होने दें। यह हमें याद दिलाता है कि आकांक्षाएं रखना ठीक है, लेकिन उन चीजों की सराहना और सम्मान करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जो हमारी पहुंच से बाहर हो सकती हैं।
तो, आइए हम लोमडी की तरह बनें, विनम्रता और कृतज्ञता को अपनाएं, और अपने आस-पास की सुंदरता को संजोएं, चाहे हम इसे छू सकें या नहीं।
भूखी लोमड़ी और अंगूर की कहानी
एक सुंदर जंगल में एक भूखी लोमड़ी रहती थी। उसके पेट में बहुत बड़ी भूख थी और वह खाने की तलाश में थी। लोमड़ी रोज़ाना जंगल में घूमती और तलाशती रहती थी, परंतु उसकी भूख कभी पूरी नहीं होती थी।
एक दिन, जब लोमड़ी अपनी खोज में थी, उसे एक अंगूर का बगीचा दिखाई दिया। अंगूर लोमड़ी को बहुत रसीले और स्वादिष्ट लगे। उसका मुंह पानी आने लगा। लोमड़ी बड़ी उत्सुकता से उन अंगूरों की ओर दौड़ी और छलांग लगाने की कोशिश की।
परंतु जैसे ही लोमड़ी ऊँचे ऊँचे उठने की कोशिश करती, अंगूरें उससे दूर जाते। लोमड़ी को थोड़ा धैर्य आया और वह फिर कोशिश करने लगी, परंतु अंगूरें फिर भी उसकी पहुंच से बाहर थे।
थक जाने के बाद, लोमड़ी ने सोचा, "शायद ये अंगूर बहुत कड़वे होंगे और मुझे पसंद नहीं आएंगे। मैं खुद को समझाती हूँ कि मैं इन्हें नहीं चाहती हूँ।"
लोमड़ी ने अपनी भूख को छिपाने के लिए अंगूरों की आलोचना की। वह कहने लगी, "ये अंगूर बहुत छोटे हैं और अच्छे नहीं लग रहे हैं। शायद वे मेरे स्वाद के लायक नहीं हैं।"
लोमड़ी बड़ी देर तक वहीं खड़ी रही, अपनी भूख को भुलाने की कोशिश करती हुई। परंतु अंगूरों के बारे में बदली सोच ने उसकी मन की स्थिति नहीं बदली।
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें कभी अपनी इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए अन्यों की बात सुननी चाहिए। लोमड़ी ने खुद को समझाने की जगह, वह अंगूरों की गिरफ्त से दूर भागने और उन्हें आलोचना करने का चुनाव किया।
इस कहानी से हमें यह समझ मिलती है कि हमें दूसरों की बात सुनने और समझने की क्षमता रखनी चाहिए। हमें स्वयं को समझने की जगह, दूसरों के पक्ष में गिरफ्तार होने और अपनी इच्छाओं को समझाने की क्षमता रखनी चाहिए।
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