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बंदर और चूहे की कहानी | billi bandar ki kahani

आज हम  पढ़ने वाले है बंदर और चूहे की कहानी क्यूंकी इसी तरह की बंदर और चूहे की कहानी पढ़ना बच्चो को अच्छा लगता है वो भी  2023 की नयी कहानिया । और साथ ही billi bandar ki kahani भी पढ़ने वाले है आज आप इस पोस्ट मे तो चलिये शुरू करते है बंदर और चूहे की कहानी





बंदर और चींटी की कहानी ( बंदर और चूहे की कहानी )


गांव के पास एक छोटा सा तालाब था। तालाब के पानी की गहराई बहुत कम थी और वहां पर कुछ बच्चे रोज़ाना खेलते थे। एक दिन, गांव के एक नाना-नानी के घर के बच्चा रमेश तालाब के पास खेलने गया।


रमेश के बड़े भाई ने उसे देखा कि वह बच्चा तालाब के पानी के ऊपर कुद रहा था। रमेश बहुत ही हैरान हो गया और उसने देखने के लिए अपने दोस्तों को भी बुलाया।


जैसे ही सभी बच्चे तालाब के किनारे पहुंचे, उन्हें भी बड़ी आश्चर्य चकिती हुई। वे सभी सोचने लगे कि कैसे तालाब के पानी पर चलने वाला बच्चा हो सकता है।


एक दोस्त ने पूछा, "रमेश, तू यह कैसे कर रहा है? तालाब के पानी पर तू कैसे चल सकता है?"


रमेश ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, "मेरे पापा ने मुझे एक साइंस किताब दी है जिसमें बताया गया है कि जिन्हें जल भारी वस्तुएँ होती हैं, वे पानी पर तैर सकते हैं।"


दूसरा दोस्त भी रोमांचित होकर पूछा, "सच में? वाह, यह तो बहुत ख़ास बात है।"


रमेश ने सबको अपनी साइंस किताब दिखाई और बताया कि जल भारी वस्तुओं के लिए अभागा अपने पैरों को तालाब के पानी के ऊपर रखना होता है। फिर वह धीरे-धीरे चलता जाता है जैसे कि जल पर भारी वस्तुएँ उपरती हैं।


सभी बच्चे रमेश को बहुत ही आदर से देख रहे थे। उन्हें उस छोटे से बच्चे की जिज्ञासा और नौकरी में लगाव ने बड़ा आश्चर्य किया। उन्हें बड़ी ही ख़ुशी हुई कि एक छोटे से बच्चे ने इतनी ख़ूबसूरत सी सीख दी।


वह दिन बड़ी ही यादगार रहा। सभी बच्चे ने एक साथ मिलकर खेला और मज़े किए। रमेश को भी बहुत अच्छा लगा कि उसकी साइंस किताब ने सभी को ख़ुश किया और वे सब उसके बारे में अधिक जानने के लिए उससे बहुत सारे सवाल पूछ रहे थे।


इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि ज्ञान और सीखने की भावना से हम कितनी ख़ुशियाँ प्राप्त कर सकते हैं। छोटी-छोटी बातों से हमें बहुत सीख मिल सकती है और हम अपने जीवन में उन्हें अमल करके अच्छे इंसान बन सकते हैं।




बंदर और खरगोश  ( बंदर और चूहे की कहानी )


एक जंगल में एक बंदर रहता था। वह बहुत ही चालाक और मस्तिष्कशील था। वह हर बार दूसरे जानवरों को चकाचौंध करता और मजे लेता था। एक दिन, उसे एक विचित्र सवाल पूछा गया। वह जानना चाहता था कि जंगल के बाकी सभी जानवर किस काम में लगे हुए हैं।


बंदर ने विचार किया और अपने दोस्त खरगोश से पूछा, "भैया, आप लोग यहां किस काम में लगे हुए हो?"


खरगोश ने उत्साहपूर्वक कहा, "हम इस जंगल के चोटी पर खरियाँ बना रहे हैं। हमारा काम है ऊपर से सभी जानवरों की देखभाल करना। हम रक्षक की भूमिका निभा रहे हैं।"


बंदर ने अपने दोस्त बाघ से भी पूछा, "तुम तो शक्तिशाली हो, तो किस काम में लगे हुए हो?"


बाघ ने गर्व से कहा, "मैं इस जंगल के सभी रास्तों पर देखभाल करता हूँ। मेरा काम है इस जंगल को सुरक्षित रखना और आने वाली आशा के रास्ते पर दस्तक देना।"


बंदर ने सोचा कि वह भी एक ऐसा काम करना चाहता है जिससे वह खुद को मनोरंजन और उत्साह से भर सके। वह भी किसी काम में लगने का निर्णय करता है।


दिन बितते जा रहे थे और बंदर को अभी तक उसका काम मिला नहीं था। उसे चिंता होने लगी और वह सोचने लगा कि शायद उसके लिए कोई काम ही नहीं है।


वह अकेले बाइठा रहा और दुखी होकर रोने लगा। उसके दोस्त आगे बढ़कर उससे पूछते हैं, "बंदर, क्या हुआ? तुम इतने दुखी क्यों हो?"


बंदर ने अपने दोस्तों से सब सच्चाई बता दी। उसने कहा, "मैं भी इस जंगल के लिए कुछ करना चाहता हूँ। क्या मुझे भी कोई अपना काम मिल सकता है?"


उसके दोस्तों ने बंदर को समझाया, "तुम एक बहुत ही चालाक और बुद्धिमान बंदर हो। तुम्हारी चालाकी का इस जंगल में भी उपयोग हो सकता है।"


बंदर को उसके दोस्तों द्वारा दिए गए शब्द समझ आये कि उसे अपनी चालाकी का सही इस्तेमाल करना चाहिए।


उसने सोचा कि वह आज ही अपनी चालाकी से जंगल में एक काम करेगा। उसने एक बड़ी सी नाली पर एक सीढ़ी लगवाई। उसके बाद, उसने एक तार लगाया और तार के दोनों तरफ गुच्छा बाँधा।


अगले दिन सुबह जब जंगल के बाकी सभी जानवर अपने दिनचर्या में व्यस्त थे, तब बंदर ने वहां बैठकर एक लाठी बनाई और उसे छिपाया। फिर वह उस नाली के किनारे बैठ गया।


जल्द ही एक भड़कीली आवाज सुनाई देने लगी। जंगल के बदमाश बंदर नाली में पानी पीने आये थे। वे अपने गुच्छे के पास पहुंचे और पानी पीने लगे।


जैसे ही वे पानी पीने के लिए झुके, तब बंदर ने अपनी चालाकी से वे लाठी से बड़ी तेज़ी से उनको मार दिया। वे बदमाश बंदर तुरंत ही चिल्लाने लगे और भागने लगे।


जंगल के सभी जानवर खुशी से भर गए। उन्होंने बंदर की चालाकी को सराहा और उसे धन्यवाद दिया। बंदर ने समझा कि उसके पास भी कुछ न कुछ योग्यता है और वह अपनी चालाकी का सही इस्तेमाल करके जंगल के लिए उपयोगी हो सकता है।


इस कहानी से हमें यह सबक मिलता है कि हमें अपने दिमाग की शक्ति का सही इस्तेमाल करना चाहिए। हमें अपनी चालाकी का उचित इस्तेमाल करके समस्याओं का समाधान करना चाहिए। हमें सभी के लिए मददगार बनना चाहिए और उन्हें खुश रखना चाहिए।




बंदर और चिड़िया  ( बंदर और चूहे की कहानी )


एक गर्मी के दिन, एक छोटा सा बंदर जंगल में घूम रहा था। उसे बहुत प्यास लगी थी और वह पानी की तलाश में था। धरती पर ताज़ा ताज़ा पानी की कोई जगह नहीं थी और वह बहुत दूर तक भटकता रहा। फिर एक झील पर पहुंचा। वहां बंदर ने देखा कि झील के किनारे ताज़ा पानी है लेकिन वह झील बहुत गहरी थी। उसे पानी पीने के लिए झील में जाना पड़ेगा।


बंदर ने झील के किनारे पानी पर चलकर देखा कि पानी बहुत गहरा है। वह घबराया हुआ था क्योंकि वह तो नहीं जानता था कि वह तैरना कैसे है। उसे डर भी लग रहा था।


तभी वह झील के पास से एक चिड़िया गुजर रही थी। चिड़िया ने बंदर को देखा और पूछा, "क्या हुआ बंदर? तुम इतने परेशान क्यों हो?"


बंदर ने चिड़िया को अपनी परेशानी बताई और कहा, "मुझे प्यास बहुत लग रही है, लेकिन झील बहुत गहरी है और मैं तैरना नहीं जानता।"


चिड़िया ने मुस्कराते हुए कहा, "बिलकुल घबराओ मत। मैं तुम्हारी मदद करूँगी। तुम मुझसे पानी के बगीचे तक झील के किनारे चलकर आओ, फिर मैं तुम्हारे पीछे उड़ कर आऊंगी।"


बंदर ने चिड़िया की मदद से पानी के बगीचे तक जाने का निर्णय किया और फिर वह धीरे-धीरे पानी में चलकर झील के बगीचे तक पहुंच गया।


चिड़िया वहां पहुंचकर उड़ कर आई और बंदर को पीछे उड़ा लिया। बंदर ने झील पार कर लिया और ताज़ा पानी पीकर अपनी प्यास बुझा ली।


बंदर ने चिड़िया को धन्यवाद दिया और कहा, "धन्यवाद चिड़िया! आपकी मदद से मेरी प्यास बुझ गई।"


चिड़िया ने हँसते हुए कहा, "इसमें धन्यवाद की कोई बात नहीं। हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए। जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तो हमें खुद भी खुशी मिलती है और दूसरों को भी।"


इस कहानी से हमें यह सबक मिलता है कि हमें दूसरों की मदद करना चाहिए और उन्हें उनकी समस्याओं का समाधान करने में मदद करनी चाहिए। हमें दूसरों की सहायता करने में संतुष्टि मिलती है और यह हमारे दिल को खुश करता है।



बंदर चिड़िया और उल्लू    ( बंदर और चूहे की कहानी )


एक गरमी के दिन जंगल में एक बंदर रहता था। उसे अच्छा खाना नहीं मिल रहा था और वह भूखा महसूस कर रहा था। वह दिन भर भटकता रहा और अन्त में एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसने सोचा कि अब रात हो गई है, इससे अच्छा है कि मैं आराम कर लूं।


रात को जब सभी जंगल के पशु आराम कर रहे थे, तो बंदर ने सोचा कि वह भी आज अच्छा खाना खाएगा। उसने एक साजिश रची कि उसे कैसे अच्छा खाना मिल सकता है।


बंदर ने सोचा कि वह चिड़िया के घर जाकर उसे उल्लू के पास बुलाएगा। जब चिड़िया उल्लू के पास पहुंचेगी, तो बंदर उसके घर में चला जाएगा और उसके खाने को चुरा लेगा। यह सोचकर बंदर खुश हो गया।


बंदर ने चिड़िया के घर जाकर उसे उल्लू के पास बुलाने का यह ख्याल दिया कि उल्लू बहुत बुद्धिमान है और वह इस साजिश को समझ जाएगा। इसलिए उसे यह ख्याल नहीं था कि बंदर को भी सभी पशु यह बात पता हो सकती है।


चिड़िया उल्लू के पास पहुंची और उसे बोली, "आपसे एक अहम सवाल है।"


उल्लू ने चिड़िया को ध्यान से सुना और कहा, "हाँ, कहिए।"


चिड़िया ने पूछा, "क्या बंदर को भी यह बात पता है कि आज रात किसी के घर में खाना है?"


उल्लू ने हँसते हुए कहा, "हाँ, ज़रूर पता होगा। वह सभी पशु और पक्षियों की बातें सुनता है और वह खुद भी अच्छे से जानता है कि किसी के घर में खाना है और किसी के घर में नहीं।"


चिड़िया को बंदर के बारे में यह जानकारी मिल गई और उसने अपनी साजिश रद्द कर दी। वह खुश होकर घर वापस चली गई।


इस कहानी से हमें यह सबक मिलता है कि हमें दूसरों के साथ धोखा नहीं देना चाहिए। बंदर की साजिश ने उसे खुशी नहीं दी और वह खुद ही अपनी हार का कारण बन गया। हमें हमेशा सच्चाई और ईमानदारी से काम करना चाहिए और दूसरों की मदद करने में सक्रिय रहना चाहिए।




बंदर और शिकारी   ( बंदर और चूहे की कहानी )


एक जंगल में एक बड़ा सा बंदर रहता था। वह जंगल के राजा के रूप में जाना जाता था, क्योंकि वह अपने समझदारी और बुद्धिमानी के लिए मशहूर था। वह सभी पशुओं की मदद करता था और जंगल में शांति और एकता का संचालन करता था।


एक दिन, बंदर जंगल के एक कोने में खेत में जा रहा था। वहां पर शिकारी भी खेत में चिड़िया की चार रेंगते थे। शिकारियों के हाथों बंदुक और तलवारें थीं, और उन्हें चिड़िया को पकड़ने के लिए बहुत मजा आ रहा था।


बंदर ने देखा कि चिड़िया बहुत भाग रही है और वे उसे पकड़ने के लिए कोशिश कर रहे हैं। बंदर को चिंता हुई और उसने सोचा कि उसे चिड़िया को बचाने में मदद करनी चाहिए।


बंदर ने तुरंत शिकारियों के पास जाकर उनसे कहा, "हे शिकारी, क्या तुम चिड़िया को पकड़ने के लिए पकड़ सकते हो? मुझे लगता है तुम एक बड़े शेर की तरह बहुत ताकतवर हो।"


शिकारी ने बंदर को देखकर मुस्कराया और कहा, "हाँ, मैं बहुत ताकतवर हूँ। मैं आसानी से चिड़िया को पकड़ सकता हूँ।"


बंदर ने उसे धोखे से मुस्कान करते हुए कहा, "ठीक है, फिर तो मेरी आंखों के सामने एक मजेदार मुकाबला देखने का समय आ गया है। मैं और तुम दोनों चिड़िया को पकड़ने की कोशिश करेंगे। जिसको पहले चिड़िया पकड़ेगा, वही विजयी होगा।"


शिकारी खुश हो गए और वे बंदर के साथ मुकाबला करने के लिए तैयार हो गए। बंदर ने चिड़िया को इशारा किया कि वह जाने का इशारा करे।


चिड़िया ने अच्छी तरह समझ लिया कि बंदर उसे बचाने के लिए आया है। वह बंदर को धोखे से विजयी बनाना चाहती थी। इसलिए उसने शिकारियों को धोखा दिया और वह बहुत तेज़ी से ऊँचाई पर उड़ गई।


शिकारी बंदर की चालों को देखकर अचंभित हो गए। वे चिड़िया को पकड़ने के लिए आगे बढ़े, लेकिन उसको पकड़ने में नाकाम रहे।


बंदर ने चिड़िया को बधाई दी और कहा, "तुमने बिल्कुल सही बनाया, तुम बहुत चालाक और बुद्धिमान हो।"


चिड़िया ने कहा, "धन्यवाद, मेरे दोस्त। तुम्हारी मदद से मैंने उन शिकारियों को मज़ा चखाया जो हमें पकड़ने की कोशिश कर रहे थे।"


बंदर और चिड़िया मिलकर खुश हो गए और उन्होंने एक-दूसरे के साथ मिलकर खुशियां मनाई। उन्होंने साथ मिलकर जंगल के अन्य पशुओं को भी खुश किया और उन्हें यह सिखाया कि वे एक-दूसरे की मदद करें और साथ मिलकर जीवन का मजा लें।


इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि एकटाही शक्ति से काम नहीं चलता, बल्कि साझेदारी और सहयोग से ही सफलता मिलती है। हमें दूसरों की मदद करने में सक्रिय होना चाहिए और सभी को मिलकर एक मज़ेदार और सफल जीवन जीना चाहिए।




बंदर का रहस्यमय घर   ( बंदर और चूहे की कहानी )


एक जंगल में एक बड़ा सा बंदर रहता था। वह बंदर बहुत ही चालाक और बुद्धिमान था। वह अपने चालाकी से जंगल के सभी पशुओं के दिलों में रहता था। वह अपने बड़े से बड़े दुश्मन को भी चकमा देता था।


एक दिन, बंदर जंगल के एक छोटे से कोने में चुपके से जाने वाला रहस्यमय घर बना रहा था। बंदर अपने दोस्तों से इस घर के बारे में बात नहीं करता था। उसके दोस्तों ने कई बार पूछा कि वह घर क्या है, लेकिन बंदर ने उन्हें कुछ नहीं बताया।


एक दिन, बंदर अपने सबसे करीबी दोस्त को साथ लेकर घर के पास पहुंचा। उसका दोस्त बहुत ही चकित और उत्साहित हो गया। उसने बंदर से पूछा, "ये तो बहुत ही सुंदर और रहस्यमय घर है। क्या तुम इसे मुझे दिखा सकते हो?"


बंदर ने हंसते हुए कहा, "बिल्कुल! मुझे खुद बनाना पड़ा था, इसलिए मैंने इसे अपने सभी दोस्तों से छिपाया था। लेकिन अब तुम्हें दिखा सकता हूँ।"


बंदर ने अपने दोस्त को घर में बुलाया और दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खुलते ही उनका दोस्त हैरान हो गया। घर के भीतर एक सुंदर सा आलिशान कमरा था, जिसमें सोने का बिस्तर और बहुत सारी ख़ूबसूरत चीज़ें थीं।


दोस्त ने हैरानी से पूछा, "ये सब क्या है? क्या ये तुम्हारा है?"


बंदर ने गर्व से कहा, "हां, ये सब मेरा है। मैंने इसे खुद बनाया है।"


दोस्त हैरान हो गया और उसने पूछा, "तुम इतने रूबरू घर कैसे बना पाए? क्या तुम्हारे पास ये सब चीज़ें थीं?"


बंदर ने हंसते हुए कहा, "नहीं, मेरे पास ये सब चीज़ें नहीं थीं। मैंने इसे बनाने के लिए धैर्य और मेहनत से काम किया। मैंने खुद ही इसे सारे सामग्री से बनाया है और इसमें अपने सपनों को पूरा किया है। इसलिए यह मेरा रहस्यमय घर है।"


बंदर का दोस्त उत्साहित हो गया और उसने कहा, "तुम सच्चे में बहुत ही चालाक और बुद्धिमान हो। तुम्हारे द्वारा बनाए गए इस घर को देखकर मुझे और भी ज्यादा प्रेरित हो गया है। मैं भी अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत करूँगा और अपना एक रहस्यमय घर बनाऊंगा।"


इस तरह, बंदर का रहस्यमय घर उसके दोस्त को प्रेरित करने के लिए बन गया और उस दिन के बाद से वह भी मेहनत करने और सपने पूरे करने में लग गया। इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि मेहनत और सही दिशा में लगने से हम अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं। यह भी दिखाती है कि हमें दूसरों की तारीफ नहीं, बल्कि उन्हें प्रेरित करना चाहिए। हम सभी को एक-दूसरे के साथ मिलकर अपने सपनों को पूरा करने में सहायता करनी चाहिए।




बंदर की चालाकी   ( बंदर और चूहे की कहानी )


बंदर नामक एक खुशहाल जंगल में रहता था। वह बंदर बहुत चालाक और मेहनती था। उसका दिन अधिकांश समय मेहनत करने में बितता था। वह सब पशुओं के दिलों में पसंदीदा था और सभी उसे बड़ा पसंद करते थे। उसके सभी दोस्त उसे देखकर प्रशंसा करते थे और उसे उन्हें प्रशंसा मिलने से खुशी होती थी।


एक दिन, बंदर को एक बड़ी सफलता हासिल करनी थी। वह अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक बड़ा परियोजना शुरू करने के लिए तैयार हुआ। उसके दोस्तों ने भी उसकी मदद की और सभी मिलकर बड़ी मेहनत करने लगे। वे रात दिन लगे रहे और अपने काम को पूरा करने में नहीं रुके। बंदर अपने साथियों के साथ समर्थ बन कर अपने लक्ष्य को पूरा करने में सफल रहा।


धीरे-धीरे, परियोजना पूरी होती गई और बंदर और उसके सभी दोस्त अपनी मेहनत का फल अर्जित कर लिया। सभी उन्हें बहुत प्रशंसा करते थे और बंदर को खुशी हुई कि उसके मेहनत ने सफलता दिलाई।


बंदर ने सोचा, "मेहनत का फल मिलता है और मेहनत से हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं।" उसने अपने सभी दोस्तों को धन्यवाद दिया और उन्हें यह सिख दी कि मेहनत और सही दिशा में लगने से हम अपने लक्ष्य को पूरा कर सकते हैं।


इस कहानी से हम सबको यह सबक मिलता है कि मेहनत से हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं। हमें अपने लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए और अपने काम में सच्चे मन से लगना चाहिए। जितने भी कठिनाइयां हमें मिले, हमें विराम नहीं लेना चाहिए और मेहनत करते रहना चाहिए। आखिर में, हमारी मेहनत जरूर फल देगी और हमें सफलता मिलेगी।



बुद्धिमान बंदर   ( बंदर और चूहे की कहानी )


एक जंगल में एक बड़ा बंदर रहता था। वह बंदर बहुत ही चालाक और बुद्धिमान था। उसे दूसरे पशुओं से अधिक खुशी उस टोकरी में नजर आने वाले फलों को खाने में होती थी। वह रोज़ाना टोकरी लेकर खेतों में जाता और उसमें अच्छे-अच्छे फलों को इकट्ठा करता।


एक दिन, बंदर टोकरी लेकर खेत में गया और बड़े-बड़े फलों को टोकरी में भरने लगा। तभी उसे दिखाई दिया, एक बड़ा सा गुच्छा। वह गुच्छा बहुत ही खूबसूरत और सुंदर दिख रहा था। बंदर ने सोचा, "आज मैं इस गुच्छे को भी अपनी टोकरी में ले जाऊंगा। यह बड़ा और खूबसूरत है, इससे खाने में भी मजा आएगा।"


बंदर ने टोकरी के साथ उस गुच्छे की तरफ बढ़ाया और उसे पकड़ने की कोशिश की। परंतु गुच्छा बहुत भारी था और बंदर उसे नहीं उठा पा रहा था। वह टोकरी के साथ साथ गुच्छे को भी उठाने की कोशिश करने लगा, परंतु वह नहीं हो पा रहा था।


बंदर बहुत ही नाराज हो गया और उसने गुच्छे को छोड़ दिया। उसने सोचा, "शायद यह गुच्छा मेरे लिए नहीं है। मैं अपनी टोकरी को खाली करके वापस आ जाऊंगा और फिर उसमें दूसरे फल भर लूंगा।"


बंदर ने अपनी टोकरी खाली की और वापस उस गुच्छे की तरफ बढ़ाया। परंतु जैसे ही उसने गुच्छे को छुआ, वह गुच्छा अचानक से उड़ गया और अपने नीचे से एक छोटे से छिपकली को दिखाई दी।


बंदर बहुत ही चकित हो गया। उसने समझा, "इस छोटी सी छिपकली ने ही मेरे बड़े गुच्छे को उड़ा दिया। यह कैसे हो सकता है?"


छिपकली ने कहा, "अरे बंदर भैया, मैंने तो बस अपने से बड़े और अच्छे फलों की तरफ इशारा किया था। परंतु आपको तो बस खाना था। आपने तो बड़े गुच्छे को भी अपनी टोकरी में रखने की कोशिश की। जिससे आपको खाने में मजा नहीं आया। अब आप देखेंगे, आपके खाली टोकरी में देखिए और देखिए कितने फल भर गए हैं।"


बंदर ने हैरानी से अपनी टोकरी में देखा और वाकई उसमें बहुत सारे फल भर गए थे। उसके दोस्त भी आकर उसे बधाई देने लगे। बंदर ने छिपकली से धन्यवाद किया और कहा, "धन्यवाद छिपकली दीदी, आपने मुझे यह सिखाया कि हमें अपने छोटे और साधारण फलों को भी उच्च समझना चाहिए। अब से मैं हमेशा अपने खाली टोकरी में छोटे-छोटे फल रखूंगा और उन्हें भी खाने का आनंद लूंगा।"


इस घटना से बंदर ने यह सीखा कि सबको

 बड़े और खूबसूरत चीजें मिलती हैं, परंतु हमें अपने छोटे-छोटे फलों का मूल्य भी समझना चाहिए। हमें दूसरों को नहीं देखना चाहिए, बल्कि अपने पास जो है, उसका मूल्य जानना चाहिए और उसका आनंद उठाना चाहिए।



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