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20+ जादुई कहानियां अच्छी अच्छी | जादुई कहानी | kahani jadui kahani


आज के इस  जादुई कहानियां अच्छी अच्छी मे आप लोग पढ़ने वाले है कहानी जादुई कहानी क्यूंकी इसी तरह kahani jadui kahani  पढ्न बच्चो को पढ्न बहुत पसंद होता है और साथ ही यहा पर आपको 2023 की बिलकुल नयी और मज़ेदार कहानिया पढ़ने को मिलने वाली है । 

और इस आर्टिक्ल मे आपको जादुई कहानी पढ़ने को मिलनी वाली है वो भी 20+ तो चलिये शुरू करते है कहानी जादुई कहानी। 

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 जादुई कहानियां अच्छी अच्छी

जादुई कहानी

कहानी जादुई कहानी

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    जादुई मछ्ली वाला 

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    एक छोटा सा गांव था जहां रहने वाले लोग अपने पारिवारिक संबंधों के साथ खुशियों से भरे जीवन जीते थे। गांव में एक छोटे से झील का भी नाम था जिसमें अनेक प्रकार की सुंदर सुंदर मछलियाँ रहती थीं। इस झील में एक जादुई मछली भी रहती थी जो किसी के सपने पूरे करने की ताक़त रखती थी।


    उस गांव के एक बड़े से जर्जर बगीचे में एक बच्चा रामू रहता था। रामू बड़े ही उत्साही और सपनों से भरे दिल वाला बच्चा था। उसका सबसे बड़ा सपना था कि वह गांव के सबसे खुबसूरत मछली को पकड़ेगा और अपने माता-पिता को खुशी में डुबारा देखेगा।


    एक दिन, रामू झील के किनारे गुमनाम बैठा था और जादुई मछली के बारे में सोच रहा था। उसे जादुई मछली ने बड़े प्यार से देख लिया और बोली, "हे रामू, मैं जादुई मछली हूँ। तुम्हारी मदद कर सकती हूँ। तुम अपने सबसे पसंदीदा सपने को पूरा करना चाहते हो ना?"


    रामू को बड़ी हैरानी हुई और उसने जादुई मछली को देखकर कहा, "सच में तुम जादुई मछली हो?"


    जादुई मछली ने मुस्कराते हुए कहा, "हां, और मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ। तुम अपने सपने को पूरा करने के लिए झील में डुबकी मारो, और जब तुम निकलोगे, तो तुम्हारा सपना पूरा हो जाएगा।"


    रामू को जादुई मछली पर भरोसा हो गया और वह बिना सोचे समझे झील में डुबकी मार गया। जैसे ही वह पानी से उपर आया, तो वहे सपना पूरा हो गया। उसने झील के सबसे खुबसूरत मछली को पकड़ लिया।


    जब रामू वापस बगीचे में आया, तो उसके माता-पिता बहुत खुश हुए। वे रामू को गले लगाकर उसे बधाई देने लगे। रामू खुशी से झूम उठा और बताया कि उसने जादुई मछली की मदद से अपना सपना पूरा किया है।


    इस तरह, रामू को अपने सपने को पूरा करने में सफलता मिली और जादुई मछली ने उसकी मदद करके उसे खुश किया। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमारे सपने पूरे करने में हमें कभी निराश नहीं होना चाहिए, और अगर हम दिल से चाहते हैं तो हमारी मदद करने के लिए जादुई मदद हमेशा मौजूद होती है।



    जादुई जलेबी 

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    एक गांव में एक जादुई जलेबी वाला रहता था। उसके जलेबी इतने स्वादिष्ट थे कि सभी लोग उन्हें खाने के लिए पागल हो जाते थे। वे जलेबी नहीं, जादू के फूलों से तैयार किए जाते थे।

    एक बार, गांव के छोटे से बच्चे राहुल ने भी सुना था कि जादुई जलेबी वाला गांव के पास है। राहुल बहुत उत्साहित हो गया और उसे खाने का मन हुआ। लेकिन वह अपने माता-पिता को इस बारे में नहीं बता सकता था क्योंकि उन्होंने कभी उससे इजाज़त नहीं ली थी।

    एक दिन, राहुल ने ज़िद की और जादुई जलेबी वाले के पास जाने का फ़ैसला किया। वह रास्ते में बहुत खुश था क्योंकि उसे लगा कि वह अब जलेबी का मज़ा चखेगा।

    जब राहुल वहां पहुंचा, तो उसने देखा कि जादुई जलेबी वाले के पास लम्बी वृक्ष में एक ख़ास पेड़ था। राहुल ने देखा कि जादू के फूल उस पेड़ पर लगे हुए थे। वह पेड़ इतना खूबसूरत था कि राहुल बस उसे देखता रह गया।

    जादुई जलेबी वाला राहुल को देखकर मुस्कराए और उसके पास जा कर बोले, "हाय, बच्चे! क्या तुम जादू के फूल देखना चाहते हो?"

    राहुल ने हँसते हुए कहा, "हां, जी हां। मुझे बहुत ख़ुशी होगी।"

    जादुई जलेबी वाला ने एक ज़ालिमी वाला फूल टूटने को चुना और उसे राहुल को दिया। राहुल को देखकर ख़ुशी हो गई क्योंकि वह जादू का फूल पकड़ने के लिए अब वापस गांव जाने को तैयार था।

    जब राहुल अपने गांव पहुंचा, तो उसने अपने दोस्तों को बताया कि उसने एक जादुई जलेबी वाले से एक जादू का फूल प्राप्त किया है।

    उसे देखकर सभी बच्चे उत्साहित हो गए और उन्होंने मिल कर जादुई जलेबी वाले के पास जाने का फ़ैसला किया। जादुई जलेबी वाला सभी बच्चों को ख़ुश देखकर मुस्कराए और उन्हें ज़ालिमी वाला जादू का फूल दिया।

    बच्चे बहुत ख़ुश थे और उन्होंने जादू के फूल को देखकर खेलना शुरू कर दिया। वे बस अपने नए ख़िलौने के साथ ख़ुशी से खेल रहे थे।

    जादुई जलेबी वाला खुश था क्योंकि उसने बच्चों को ख़ुश कर दिया और उन्हें एक नया अनुभव दिया। वह जादू के फूल से जलेबी बनाने के लिए तैयार था, लेकिन उसके दिल में अब वह ख़ुशी थी जो किसी जादू से पाई नहीं जा सकती थी।


    जादुई जूते 

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    एक छोटे से गांव में रहता था एक छोटा सा बच्चा नाम राजू। राजू का सबसे पसंदीदा काम था उड़ने के सपने देखना। उसे ऊँची ऊँची उड़ानेवाले जूते बहुत पसंद थे और वह हर दिन उन्हें देख कर अपने भविष्य की उड़ानें सोचता था।

    एक दिन, राजू अपने माता-पिता से बोला, "माँ-पापा, मुझे एक जादुई उड़ने वाले जूते चाहिए। मैं उनसे अपने सपने साकार करूँगा।"

    माता-पिता राजू के सपनों को समझते थे और उन्होंने उसे वादा किया, "बेटा, हम तुम्हें उड़ने वाले जूते ख़रीदेंगे। तुम अपने सपनों को पूरा करने के लिए तैयार रहना।"

    अगले ही दिन, राजू के माता-पिता ने उड़ने वाले जूते ख़रीद लिए। जूते के तले एक छोटा सा तोपड़ भी था, जिसे जूते को उड़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था। जूते को पहनते ही राजू ने एहसास किया कि वह सचमुची उड़नेवाले जूते हैं।

    राजू बहुत ख़ुश था और जूते के साथ उड़ने लगा। जैसे ही वह जमीन से ऊपर उठा, उसके दिल में एक नई ऊँचाई की भावना उत्पन्न हुई। वह जंगलों के ऊपर, बादलों के बीच, चमकती धूप के साथ उड़ने लगा।

    राजू के चेहरे पर ख़ुशी छा गई। वह अपने गांव के चारों ओर घूमता हुआ अपनी उड़ानों का आनंद लेता था। उसके दोस्त भी उसे खूबसूरत ऊँचाई से देखकर चमत्कृत हो गए।

    पूरे गांव में राजू की उड़ानें की ख़बर फैल गई। लोग उसे बधाई देने उसके पास आने लगे। वह अपने माता-पिता के प्रेम से सम्मानित हो गया और उन्हें अपनी उड़ानें से ख़ुश करने के लिए धन्यवाद दिया।

    जूते ने राजू को एक नया और संवेदनशील दृष्टिकोन दिया और उसे दिखाया कि सबकुछ संभव है, अगर आप सच्ची उम्मीद रखते हैं और सपनों का पीछा करते हैं। राजू ने जूते को एक अद्भुत दोस्त माना और उसकी साथी उड़ानें का आनंद लेने लगा। उसकी उड़ानों का सफर अब और भी मनोहर हो गया।

    इसी तरह, राजू ने अपने सपनों को पूरा करके सबको दिखाया कि जीवन में कुछ भी संभव है, अगर हम विश्वास करें और मेहनत से काम करें। जूते ने राजू को अपने साथ सफलता और ख़ुशियों के सफर पर ले जाया और उसे यह सिखाया कि जीवन एक ख़ूबसूरत सफर है, जिसे वह उड़ने के सपने से भर सकता है।

    जैसे जैसे राजू बड़ा होता गया, वह अपने उड़ानों को और भी बुलंद करता गया। वह अब दुनियाभर के लोगों को इन्स्पिर करने लगा और उन्हें सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित करता था। उसके जूते ने उसे विश्वास दिलाया कि वे दोनों एक दूसरे के लिए पूर्णता हैं और उन्हें उड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं।

    इस तरह, राजू और उसके जादुई उड़नेवाले जूते ने सबको दिखाया कि सपनों को पूरा करना आसान है, अगर हम उन्हें सच्ची भावनाओं के साथ देखें और उनकी ओर से अपने मेहनती प्रयास करें। उनकी ये जादुई उड़ने वाले जूते ने उसे एक सच्चे सपने का महत्व समझाया और उसे दिखाया कि उसके सपने उसे अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना सकते हैं।



    जादुई बिरयानी 

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    गांव में एक छोटी सी मस्तिष्क वाली लड़की नाम रिया रहती थी। रिया बड़ी दिलचस्प बातें करने वाली थी और उसकी कल्पना ने उसे अलग कर दिया था। वह अपने गांव के हर चीज़ को जादुई बना देती थी।

    एक दिन, रिया को देखकर एक अजीब ख़्वाब आया। उसे लगा कि वह एक जादुई हैंडपंप बिरयानी बना सकती है। यह बिरयानी एक जादुई हैंडपंप से निकलेगी और सभी लोग उसे खा सकेंगे, और जैसे ही उसे मुंह में डालेंगे, वह सबको अपने पसंदीदा भोजन के स्वाद का मजा देगी। वह बिरयानी थी जो किसी भी खास तरीके से बनी नहीं जा सकती थी और सभी को खुश कर सकती थी।

    रिया को ख़ुशी के अंदाज़ बेहद अजीब लगा। वह जल्दी से उठकर अपने घर के बगीचे में जा पहुंची, जहां एक पुरानी भट्टी खड़ी थी। उसने भट्टी को अच्छे से साफ किया और उसे एक साफ़ पानी से भर दिया। फिर उसने चावल, सब्ज़ी, मसाले, और अनेक अन्य सामग्रीयाँ इकट्ठी की और अपने जादुई हाथ से बिरयानी का मिश्रण तैयार किया।

    जैसे ही रिया ने बिरयानी का मिश्रण तैयार किया, उसने एक जादुई हाथपंप को नीचे देखा। रिया को विश्वास नहीं हुआ कि यह कैसे हो सकता है। लेकिन वह बिरयानी बना रही थी, इसलिए वह उसे ध्यान नहीं दिया और जादुई हाथपंप को चालू कर दिया।

    कुछ ही क्षणों में, बिरयानी की खुशबू बगीचे में फैलने लगी। जैसे ही रिया ने अपनी जादुई हाथपंप को चालू किया, बिरयानी बड़े बड़े बादशाहों की शान वाली बिरयानी बनने लगी। उसके घर के अराम से बैठे हर सदस्य को उस जादुई बिरयानी का स्वाद चखने का मौका मिला। वे सभी ख़ुश थे और रिया को उसके जादुई हाथपंप की जादुई शक्तियों पर विश्वास हो गया।

    रिया की खुशी की कोई सीमा नहीं थी। वह जादुई हैंडपंप को देखकर ख़ुद को बहुत ख़ास महसूस कर रही थी। उसने अपने गांव के अन्य बच्चों को भी जादुई बिरयानी ख़िला कर उन्हें अपने जादुई हाथपंप की जादुई शक्तियों का अहसास करवाया।

    इस जादुई हैंडपंप बिरयानी की वजह से रिया के गांव का माहौल ख़ुशियों से भर गया। सभी लोग रिया के जादुई बिरयानी को बहुत पसंद करते थे और वह सभी को खुश और समृद्ध बनाने में सफल हो गई।

    इस जादुई हैंडपंप बिरयानी के किस्से गांव में अब तक सुनाए जाते हैं और रिया और उसकी जादुई हाथपंप की ख्वाहिश को सब लोग सलामती से याद करते हैं। रिया ने सच्चे दिल से विश्वास किया और उसके सपने सच हो गए। उसे यह बताने के लिए और अन्यों को प्रेरित करने के लिए कि सपनों को पूरा करना संभव है, वह आज भी अपने जादुई हाथपंप बिरयानी को खुशी के साथ बनाती है।



    हीरो का नाला 

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    एक छोटे से गांव में एक बड़े हीरो का नाला रहता था। लोग उसे "जादुई हीरो का नाला" कहते थे क्योंकि इस नाले का पानी सभी रोगों को ठीक कर देता था और शक्ति और स्वस्थ्य का स्रोत था।

    बच्चे रोज़ाना इस नाले के पास खेलने आते थे और उसके पानी से खिलवाड़ करते थे। वे सभी नाले को बहुत पसंद करते थे और उसकी जादुई शक्तियों का आनंद उठाते थे।

    एक दिन, गांव के एक दुखी माँ ने अपने बच्चे को लेकर नाले के पास आने का फैसला किया। उसके बच्चे को एक संग्रहालय जाने का मन था, लेकिन उसे उसका टिकट नहीं ख़रीद पा रही थी। वह रोते हुए आई और नाले के पास बैठ गई।

    जादुई हीरो का नाला उसके दुखी होने को देखकर उसके पास जाने आया। वह उसे प्यार से देखते हुए बोला, "क्या हुआ, बच्चे? तुम इतने उदास क्यों हो?"

    दुखी माँ ने रोते हुए कहा, "मेरे पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं और मेरे बच्चे को संग्रहालय जाना है। उसका टिकट ख़रीदने के लिए मुझे और पैसे चाहिए।"

    जादुई हीरो का नाला उसके दर्द को समझते हुए बोला, "माँ, आप फिक्र न करें। मैं आपकी मदद करूंगा।"

    सोचते ही नाले ने अपनी जादुई शक्तियों का उपयोग किया और अचानक एक चमकता हुआ टिकट उस दुखी माँ के सामने आ गया।

    दुखी माँ ने चकरा जाकर कहा, "यह टिकट कहाँ से आया?"

    जादुई हीरो का नाला मुस्कराते हुए बोला, "यह जादू से बना है। यह आपके बच्चे के संग्रहालय जाने के लिए है।"

    दुखी माँ ने आभार भरी आँखों से जादुई हीरो का नाला को धन्यवाद दिया और उसके बच्चे को संग्रहालय ले गई।

    इस तरह, जादुई हीरो का नाला ने दुखी माँ की मदद की और उसके बच्चे को उसकी ख़्वाहिश पूरी करने में सहायता की। यह नाला न सिर्फ एक जादुई स्थान था, बल्कि एक दिल छू लेने वाला दोस्त भी था, जो हर व्यक्ति की मदद करता और उन्हें ख़ुशियों से भर देता था। इसका नाम भी "जादुई हीरो का नाला" था, क्योंकि यह नाला सभी को हकीकत में एक जादुई हीरो की तरह लगता था।


    लालची टमाटर वाला 

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    एक छोटे से गांव में रहता था एक टमाटर वाला बुढ़िया। उसके पास बहुत सारे स्वादिष्ट टमाटर होते थे और वह उन्हें अपनी दुकान पर बेचकर अपने परिवार का पेट पालती थी। लेकिन उसके मन में हमेशा लालच था। वह चाहती थी कि उसके पास और भी ज्यादा टमाटर हों, जिससे उसकी कमाई और बढ़ जाए।

    एक दिन, टमाटर वाली बुढ़िया को एक विचार आया। उसने सोचा, "मैं एक जादुई वृक्ष की खोज करूँगी जो मुझे हर दिन स्वादिष्ट टमाटर देता है। उससे मेरी कमाई और बढ़ जाएगी।"

    उसने तत्काल अपनी दुकान बंद कर दी और एक जादुई वृक्ष की खोज करने के लिए निकल पड़ी। वह दिनभर जंगलों में भटकती रही, लेकिन जादुई वृक्ष नहीं मिला।

    समय बीतता गया और सूरज ढलने वाला था। बुढ़िया को बहुत थकान महसूस होने लगी और उसे प्यास भी लगने लगी। वह एक नदी के किनारे आकर बैठ गई।

    नदी के पानी के पास बैठते ही, उसे एक बड़ा सा टमाटर दिखाई दिया। वह टमाटर बहुत स्वादिष्ट और सुन्दर दिख रहा था। लालची टमाटर वाली बुढ़िया को देखकर वह टमाटर बोला, "मैं एक जादुई टमाटर हूँ। मुझसे कोई चीज भी मांगो, और मैं तुम्हें उसे मिला दूँगा।"

    बुढ़िया का मन जादुई टमाटर चाहने लगा। उसने टमाटर से कहा, "मुझे एक जादुई वृक्ष चाहिए, जो मुझे हर दिन स्वादिष्ट टमाटर दे सके।"

    जादुई टमाटर बोला, "ठीक है, लेकिन ध्यान रहे, इस वृक्ष का ख़्याल रखना। यह बहुत अनमोल है।"

    जादुई टमाटर वाली बुढ़िया ख़ुशी से वृक्ष का ध्यान रखने की कसम खाकर उसे ले आई। वह अपनी दुकान पर वृक्ष को रख दिया और उसे रोज़ाना पानी देने लगी।

    समय बीतता गया और वृक्ष को देखते देखते, वह अचानक बदलने लगा। उसमें फूल आने लगे और फिर टमाटर उस पर लाल होने लगे।

    लालची टमाटर वाली बुढ़िया को ख़ुशी का आंदाज़ नहीं हुआ। वह अचानक बिलकुल ख़ुश नहीं थी। उसके मन में आए सभी ख़ुशियों के बीच उसे टमाटर का भाव पहले से कम लगने लगा।

    जब रोज़ उसे टमाटर वृक्ष के स्वादिष्ट टमाटर मिलने लगे, तब उसे उस जादुई टमाटर की परवाह नहीं रही। वह अब खुश नहीं थी, क्योंकि उसके अधिकार में होने वाली टमाटर की वृद्धि से उसका लाभ हो रहा था, लेकिन वह उस जादुई टमाटर के लालच से खो चुकी थी।

    यह कहानी हमें यह सिखाती है कि लालच हमेशा अच्छा नहीं होता है। हमें अपनी क़ीमती चीज़ों का ख्याल रखना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए कि लालची होने से हमें कभी भी अच्छा नहीं होता। असली संख्यावाची सम्पत्ति वह है जो हमारे जीवन को खुशियों से भर दे, और उसे हमें जीने में सहायता करे। लालची होकर हम अपनी खुशियों को खो देते हैं, और असली ख़ुशी खो देते हैं।


    अंडा बेचने वाला गरीब 

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    गांव के पास एक छोटी सी दुकान थी, जिसे गरीब आदमी ने चलाना शुरू किया था। वह आदमी अपने परिवार का ख़्याल रखने के लिए दिन-रात मेहनत करता था। उसकी दुकान में वह रोज़ाना सबसे ताज़ा अंडे लाता था, जो उसने आसपास के गांवों से खरीदे थे।

    एक दिन, उस गरीब आदमी को दुकान पर अचानक अंडे बेचने वाला एक अमीर व्यक्ति दिखाई दिया। उस व्यक्ति के पास एक बड़ी सी गाड़ी थी और उसके पास अनेक सुंदर सुंदर चीज़ें थीं। वह गरीब आदमी ने उस अमीर व्यक्ति का स्वागत किया और उसे अपनी दुकान में बुलाया।

    अमीर व्यक्ति ने दुकान की साफ़-सफ़ाई देखी और बोला, "तुम्हारी दुकान तो बहुत साफ़ है, पर ये तुम्हारे पास बिक्री के लिए इतने छोटे-छोटे अंडे क्यों हैं?"

    गरीब आदमी ने हँसते हुए उत्तर दिया, "साहब, मैं अपने बच्चों के लिए रोज़ाना अंडे ख़रीदता हूँ और मुझसे बड़े अंडे खरीदने का विचार ही नहीं हो सकता। मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं।"

    अमीर व्यक्ति ने गरीब आदमी को विचारने के लिए कहा, "तुम देखो, मैं तुम्हारे बड़े अंडे सब ख़रीद लूँगा, पर उन्हें एक शर्त पर।"

    गरीब आदमी ने आश्चर्य से पूछा, "कौन सी शर्त है, साहब?"

    अमीर व्यक्ति ने बताया, "जब तक तुम ख़ुश रहोगे और तुम्हारे पारिवार को यही अंदाज़ रखने में मदद मिलेगी, तब तक तुम्हारे पास एक ख़ाली टिफ़िन रहेगा।"

    गरीब आदमी को अमीर व्यक्ति की यह शर्त थोड़ी अजीब लगी, पर उसने मान लिया। वह उसी दिन से बड़े अंडे बेचने लगा, लेकिन उन्हें टिफ़िन में नहीं रखता था। बल्कि वह छोटे छोटे अंडे को अपने ग्राहकों को उचित मूल्य पर बेचता था।

    जब अमीर व्यक्ति ने उसके पास से जाना, तो वह गरीब आदमी के दुकान में सबसे बड़ी ख़ुशी से खड़ा था। अमीर व्यक्ति ने पूछा, "तुम तो छोटे छोटे अंडे ही क्यों बेचते हो?"

    गरीब आदमी ने प्रसन्नता से जवाब दिया, "साहब, यह छोटे छोटे अंडे ही तो हमारे दिल को छुआ करते हैं और हमें ख़ुशी देते हैं। इन अंडों से मेरे बच्चे स्कूल जाते हैं और हम सभी मिलकर ख़ुशी-ख़ुशी से खाते हैं। ये छोटे अंडे ही तो हमारे लिए ज़्यादा क़ीमती हैं, साहब।"

    अमीर व्यक्ति ने गरीब आदमी के ईमानदारी और ख़ुशी को देखकर उसे धन्यवाद दिया। उसने कहा, "तुमने सच्चे मन से अपने सपनों को पूरा किया है, और यही सच्ची ख़ुशी है।" उसने गरीब आदमी को और उसके परिवार को धन्यवाद दिया और उस दिन से उसका रिश्ता गरीब आदमी के साथ और भी मजबूत हुआ।

    इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि हमें सपनों को पूरा करने के लिए दिल से मेहनत करनी चाहिए, और सच्चे ईमानदारी से जीवन जीना चाहिए। हमारी ख़ुशी हमारे सबसे छोटे-छोटे सपनों में छुपी होती है, और हमें उन्हें सच्चे मन से अपनाना चाहिए।


    लालची राजमा चावल वाला 

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    एक छोटे से गांव में एक राजमा चावल और बिरयानी बनाने वाला बुढ़िया रहती थी। उसके द्वारा बनाए गए राजमा चावल और बिरयानी की ख़ुशबू से पूरा गांव महक जाता था। उसके हाथ की मिठास और स्वाद के चलते लोग उसके खाने के दीवाने हो गए थे।

    एक दिन, गांव में एक विश्वविद्यालय से लौटे एक युवक ने राजमा चावल और बिरयानी वाली बुढ़िया के साथ दुकान खोली और उसकी मदद करने का निर्णय किया। राजमा चावल और बिरयानी वाली बुढ़िया को यह बहुत ख़ुशी हुई कि अब उनकी मदद होगी और दुकान भी अधिक सफलता के साथ चलेगी।

    धीरे-धीरे दुकान की ख़बर पूरे गांव में फैलने लगी। लालचीता से भरी हुई लोग रोज़ाना दुकान पर तैनात हो जाते थे, और राजमा चावल और बिरयानी की चाहत में वे लंबी लाइन में लग जाते थे।

    दिन ब दिन दुकान का काम बढ़ता गया और बुढ़िया के जीवन में अच्छे दिन आने लगे। लेकिन धीरे-धीरे राजमा चावल और बिरयानी वाले युवक में लालच उभरने लगा। उसे लगने लगा कि उसके पास अब बहुत सारे पैसे आ रहे हैं, और उसे और ज्यादा धन कमाना है। वह अपनी मददकर्ता बुढ़िया को देखते ही इरादे बदलने लगा।

    एक दिन, लालची युवक ने बुढ़िया से कहा, "बुढ़िया, हमारे दुकान का इतना धन हो गया है कि अब हम और ज्यादा धन कमाना चाहते हैं। मैं सोच रहा हूँ कि हम राजमा चावल और बिरयानी की जगह एक सुपर लक्सरी रेस्टोरेंट खोलेंगे। वहाँ बिना लाइन के हमारे ग्राहक खाना खाएँगे और हमारी कमाई भी दोगुनी हो जाएगी।"

    बुढ़िया ने उसे बचपन से सिखाया था कि लालचीता और अहंकार से बचना चाहिए, पर लालची युवक को उस बात का कोई ध्यान नहीं था। उसने जिद्दी होकर खुद को अधिक धनी बनाने का फैसला किया।

    अगले ही दिन, वह दुकान को बंद कर दिया और अपने सुपर लक्सरी रेस्टोरेंट की तैयारियों में लग गया। रेस्टोरेंट खोलने के बाद उसके द्वारा बनाए गए व्यंजनों की ख़ुशबू से पूरा गांव महक जाता था। लोग खुशी-खुशी उसके रेस्टोरेंट में खाने आते थे, पर धीरे-धीरे उन्हें महसूस होने लगा कि राजमा चावल और बिरयानी वाले दिनों की स्वाद की कहानी बस यादों में ही बाकी रह गई है। उन्हें खुद को समझ आया कि पैसे कमाने के चक्कर में उसने अपनी असली ख़ुशी खो दी है।

    एक दिन, जब वह अपने रेस्टोरेंट में बारिश के कारण गांव के लोगों की कमी थी, तभी वह बुढ़िया दुकान के पास से गुजर रही थी। बुढ़िया ने उसे देखा और मुस्कराते हुए कहा, "बेटा, अब तक तुम अपने धनी होने की ख़ुशी खोज रहे हो? यह सच्चा धन नहीं है, जिसे हम अपने सपनों को पूरा करने में पा सकते हैं। सच्ची ख़ुशी हमारे अन्दर होती है, हमारे दिल में।"

    लालची युवक ने गले से लगाकर कहा, "आप ने सही कहा, बुढ़िया। मैंने अपनी ख़ुशी को अपनी आँखों से खो दिया। मुझे माफ़ कर दो।"

    बुढ़िया ने उसे मुस्कराते हुए समझाया, "बेटा, हर इंसान धन कमाने का प्रयास करता है, पर सच्ची ख़ुशी उसमें है जो वो ख़र्च कर सकता है, उसके सपनों को पूरा करने में, और दूसरों के ख़ुशी में।"

    इससे लालची युवक को समझ आया कि असली ख़ुशी वो दुकान में थी, जहाँ वो बिरयानी और राजमा चावल के स्वाद के साथ खुश होते थे। उसने बुढ़िया को धन्यवाद दिया और दुकान को फिर से खोल दिया।

    इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि लालच और अहंकार से बचना चाहिए और असली ख़ुशी स्वादिष्ट खाने और दूसरों के साथ अच्छे समय बिताने में होती है। हमें हमेशा अपने सपनों को पूरा करने में खुशी मिलेगी और जिंदगी में सच्ची ख़ुशी का आनंद उठाना चाहिए।


    जादुई जामुन का पेड़ 

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    एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक जादुई जामुन का पेड़ था। वह पेड़ बहुत ही खास था क्योंकि इस पेड़ पर जामुन लगने से पहले यह सदा हरा और खिला-खिला रहता था। पर एक बार, जामुन लगने के बाद भी यह पेड़ हमेशा हरा रहता था। जामुन तो अच्छे थे, पर वे कभी पकने नहीं थे। लोग इस जादुई जामुन के बारे में कहानियां सुनते थे और देखने के लिए लोग दूर-दूर से उस गांव तक आते थे।


    गांव के एक बच्चे का नाम राजू था। उसे भी बहुत दिनों से इस जादुई जामुन का पेड़ देखने की ख्वाहिश थी। वह रोज़ाना जामुन के पेड़ के नीचे जाकर बैठता था और सोचता था कि कब तक उसको यह ख़बर मिलेगी कि यह जादुई जामुन अच्छे से पक गया है।


    एक दिन, राजू ने अपने दोस्त बिल्लू को जादुई जामुन के पेड़ को देखने के लिए अपने साथ ले जाने का फैसला किया। वे दोनों उत्साहित थे और जल्द ही वह जादुई जामुन के पेड़ के पास पहुंच गए। राजू की ख़ुशी का तो ठीक-ठाक अंदाज़ था, पर बिल्लू को भी उस जादुई जामुन को देखने की बहुत ख्वाहिश थी। उसने बिना सोचे समझे जामुन को तोड़ लिया और उसे खाने लगा।


    राजू ने देखा कि उसका दोस्त बिल्लू जादुई जामुन खा रहा है और उसे रोकने के लिए उसके पास जा पहुंचा, पर उसके पास पहुंचते ही जादुई जामुन के साथ हो गई एक अजीब सी बात। जादुई जामुन ने राजू को बोला, "राजू, मुझे छोड़ दो। तुम्हारा दोस्त जादुई हूँ मैं, तो तुम्हारे दोस्त बिल्लू को भी जादुई बना दूँगा।"


    राजू को बड़ी ख़ुशी हुई और उसने जादुई जामुन को तोड़ना बंद कर दिया। उसने बिल्लू को जादुई जामुन दिया और उसे कहा, "यह जादुई जामुन है, तुम इसे खाओगे तो तुम भी जादुई हो जाओगे।"


    बिल्लू ने जादुई जामुन खाया और उसके बाद एक चमकती हुई रौशनी उसके शरीर से बहने लगी। बिल्लू ने देखा कि उसके हाथ-पैर उड़ने लगे हैं। वह ख़ुशी से नाच उठा और अपने दोस्त राजू को गले लगा लिया।


    राजू को बिल्लू के साथ खेलने का मजा आया और वे दोनों एक साथ उड़ने लगे। वे ऊंची-ऊंची उड़ानें भर रहे थे और उन्हें बहुत मजा आ रहा था।


    इस तरह, जादुई जामुन ने राजू और बिल्लू के बीच एक अच्छी दोस्ती की शुरुआत कर दी और उन्हें एक-दूसरे के साथ अनगिनत सुखी पलों का आनंद उठाने का मौका दिया। जादुई जामुन ने सिखाया कि दोस्ती की क़ीमत सभी धन-धान्य से ऊपर होती है और सच्चे दोस्त हमेशा एक-दूसरे के साथ ख़ुशी-ख़ुशी उड़ते रहते हैं।


    जादुई पेड़ 

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    एक छोटे से गांव में एक बड़े ही ख़ास पेड़ की कहानी है। यह पेड़ था जादुई रोटियों का पेड़। हां, आपने सही सुना! इस पेड़ पर हर दिन जादुई रोटियाँ उगती थीं। वो रोटियाँ न सिर्फ स्वादिष्ट थीं, बल्कि जो भी उन्हें खाता, वो अचानक से अपने दिल की मांग पूरी कर पाता।

    गांव के लोग इस जादुई पेड़ के बारे में बहुत सुनते थे और हर रोज़ उसकी जादुई रोटियों की ख़ुशबू से भरा गांव महक उठता था। उन्होंने इसे अपनी ज़िंदगी का वरदान समझा और इससे बनाये जाने वाले रोटी का सम्बन्ध बहुत ही अनमोल था।

    एक दिन, गांव के एक बच्चे का नाम राहुल था। राहुल बड़े उत्साह से सुनता था कि जादुई पेड़ पर रोटियाँ उगती हैं और उसे खाने से लोग अपनी सभी मनोकामनाएं पूरी कर पाते हैं। राहुल को भी एक बड़ी ख़्वाहिश थी कि वो भी जादुई रोटियाँ खाएं और अपनी पसंदीदा चीज़ें पाएं।

    एक दिन, राहुल ने अपने दोस्त सीमा के साथ मिलकर वो जादुई पेड़ के पास पहुंच गया। उन्होंने देखा कि पेड़ पर सचमुच में जादुई रोटियाँ उग रहीं हैं! राहुल और सीमा ने ख़ुशी-ख़ुशी रोटियाँ तोड़ी और उन्हें खाने लगे। जैसे ही वो रोटी खाते, उनकी मनोकामनाएं पूरी होने लगती।

    राहुल ने सोचा कि अब वो अपनी पसंदीदा चीज़ें पाने का मौका ना छोड़े। वो पेड़ के पास गया और चाहते हुए रोटी तोड़ने लगा। पर बिलकुल भी जादू नहीं हुआ! राहुल बहुत निराश हो गया और सोचा कि शायद वो गलत रोटी तोड़ रहा है। फिर उसने देखा कि रोटी तो वही है जो उसने खाई थी।

    राहुल ने सोचा कि शायद जादुई रोटियों का पेड़ उसके लिए वाकई जादुई नहीं है। जादू तो उस रोटी में है, जो उसने सीमा के साथ खाई थी। उस वक्त उसे बहुत ख़ुशी मिली थी, और वो खुशी उस रोटी को जादुई बना देती थी। उसे समझ आया कि सच्ची ख़ुशी उसके अंदर है और उसे वो जादुई पेड़ की कोई ज़रूरत नहीं है। वो अपने जीवन के हर पल का आनंद उठाना सीख गया और अब वह खुशी-खुशी अपने दोस्तों के साथ अच्छे वक्त बिताता।

    इस कहानी से हमें यह सबक मिलता है कि हमें ख़ुशी अपने अंदर ही मिलती है, और सच्चे दोस्तों के साथ समय बिताने से हमारी ज़िंदगी में ख़ुशियाँ और ख़ूबसूरती आती है। इस तरह, हमें जादुई रोटियों के पेड़ की ज़रूरत नहीं होती, क्योंकि सच्ची ख़ुशी हमारे अंदर होती है।


    जादुई परी का कौआ 


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    बहुत समय पहले, एक छोटे से गांव में एक जादुई कुआ था। इस कुएं में हमेशा पानी था, और जो भी व्यक्ति इसके पास आता, उसे अपनी मनोकामनाएं पूरी होती। इस कुएं के आस-पास रहने वाले लोग बहुत खुश थे क्योंकि उन्हें अपनी इच्छाएं पूरी करने का मौका मिलता था।

    एक दिन, गांव के एक बच्चे का नाम विक्रम था। विक्रम बहुत अच्छा बच्चा था, लेकिन उसकी दिल की एक छोटी सी ख्वाहिश थी। वह एक परी से मिलना चाहता था। उसने सभी लोगों से पूछा लेकिन कोई भी उसे परी के बारे में कुछ नहीं बता सका। लेकिन विक्रम अपनी ख्वाहिश से हार नहीं माना और अब वह जादुई कुएं के पास पहुंच गया।

    जादुई कुएं के पास पहुंचकर विक्रम ने धीरे से एक परी से मिलने की ख्वाहिश बारीकी से बताई। जादुई कुआ ने विक्रम की इच्छा सुनी और उसे एक जादुई मिरर दिया। उसने कहा, "इस मिरर को देखकर जो भी इच्छा करोगे, वो पूरी हो जाएगी। लेकिन ध्यान रखिए, आपकी इच्छा सच्ची और निस्चित होनी चाहिए।"

    विक्रम खुशी से भरकर मिरर को देखा और मांगा, "मैं परी से मिलना चाहता हूँ।"

    जैसे ही उसने इच्छा की, विक्रम के सामने एक सुंदर सी परी आई। वह परी विक्रम के साथ बातचीत करने लगी और उसने उसकी सभी ख्वाहिशों को पूरा कर दिया।

    विक्रम बहुत खुश था और उसने जादुई कुएं का धन्यवाद किया। उसने फिर जादुई मिरर को वापस दिया और कहा, "धन्यवाद कुएं जी, मेरी सभी इच्छाएं पूरी हो गईं।"

    जादुई कुआ ने मुस्कराकर कहा, "यह तो बस एक जादुई मिरर था। सच्ची ख़ुशी और समृद्धि तो अपने अंदर है। हमारे पास जो है, उसे हम सही तरीके से उपयोग करने की कला आनी चाहिए। जिस तरह से तुमने अपने सपनों को पूरा किया, उससे ही तुम्हारी ख़ुशी और समृद्धि आती है।"

    विक्रम ने यह समझा और अब उसे अपने अंदर की सच्ची ख़ुशी की महत्व का एहसास हुआ। वह उस परी के साथ बहुत अच्छे दोस्त बन गया और हर दिन ख़ुशी से जीता।

    इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि ख़ुशी हमारे अंदर है, हमें सिर्फ उसे खोजना और पहचानना होता है। भले ही हमारे पास जादुई चीज़ें क्यों न हों, पर हमारे अंदर की सच्ची ख़ुशी ही सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है।


    बंदर का ढाबा 

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    एक छोटे से गांव में एक गरीब अनाथ लड़की रहती थी। उसके माता-पिता बचपन में ही इस संसार से चले गए थे और उसे किसी भी रिश्तेदार या संबंधित से कोई सहायता नहीं मिलती थी। वह अकेले ही जीवन बिताती और खुद का ध्यान रखती। वह लड़की बहुत मेहनती और ईमानदार थी।

    एक दिन, वह लड़की बहुत ज़्यादा भूखी थी क्योंकि उस दिन उसे खाने की कुछ भी नहीं मिला था। वह भूखी पेट भटकती रही और एक बंदर के ढाबे पर पहुंच गई। ढाबे के मालिक, जो एक बड़े महान आदमी थे, ने उसे देखा और उसे खाने की इच्छा दिखाई। उन्होंने वह लड़की से पूछा, "बेटा, तुम भूखी हो? क्या मैं तुम्हें कुछ खिला सकता हूँ?"

    लड़की ने अपनी भूखी हालत बताई और अनाथ होने की कहानी सुनाई। ढाबे के मालिक को उस लड़की की एकाग्रता और मेहनत ने दिलों को छु लिया। उन्होंने उसे एक बड़ा सा खिलौना दिया और कहा, "यह तुम्हारे लिए है। इसे लेकर घर जाओ और खेलो।"

    लड़की बहुत खुशी खुशी घर लौटी और खिलौने से खेलने लगी। उसने उस खिलौने की मदद से कुछ पैसे भी कमाए और अपने पेट को भर लिया। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था।

    दिन बीत गए और लड़की रोज ढाबे पर जाने लगी। ढाबे के मालिक ने उसे अपनी सारी खाली बोतलें और रद्दी रख दी। लड़की ने वे सभी बोतलें एक साथ बेचने की कोशिश की और उनसे कुछ पैसे कमाए। जैसे ही उसने पैसे कमाए, उसने उनसे खुद को और दूसरों को मदद करने की इच्छा पूरी करने का विचार किया।

    ढाबे के मालिक ने उस लड़की की मेहनत और सच्चाई को देखते हुए उसे अपना साथी बना लिया और उसे अपने ढाबे में काम करने का मौका दिया। लड़की ने उस ढाबे में बड़ी मेहनत से काम किया और धीरे-धीरे उसकी ख़ासी बढ़ती वजह से ढाबा बहुत सफल हो गया।

    ढाबे के मालिक ने उस लड़की को अपनी अनुशासन और मेहनत का फल दिया और उसे अपनी बेटी की तरह गोद लिया। लड़की ने एक अनाथ थी, लेकिन उसकी मेहनत, सच्चाई और दृढ़ इच्छा ने उसे एक खासी बना दिया जिसके पास सबकुछ था। उसकी मेहनत ने उसे खुद का सहारा बना दिया और उसने सबको दिखा दिया कि किसी के पास कितने भी संसाधन कम क्यों न हों, जीवन में मेहनत, सच्चाई और अच्छे आचरण से हम सभी अपने लक्ष्यों को पूरा कर सकते हैं।


    जादुई लाहेंगा 

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    एक छोटे से गांव में एक बहुत ही सुंदर और बुद्धिमान लड़की नाम रिया रहती थी। रिया के पास एक जादुई लहेंगा था, जिसका रंग चाँद की किरणों से भी चमकदार था और जिसकी सजावट देखकर किसी का मन मोह लेती थी। इस जादुई लहेंगे की वजह से रिया को सभी लोग पसंद करते थे और उसके गांव की सबसे खूबसूरत लड़की माना जाता था।

    एक दिन, रिया के गांव में एक बड़ा मेला आया। मेले की खुशबू, धमाका और रंग-बिरंगे झंडे सभी को आकर्षित कर रहे थे। रिया भी बहुत उत्साहित थी क्योंकि उसे बड़े खुशहाली से मेले में जाने का मौका मिल रहा था।

    मेले में रिया ने बहुत सारी मिठाइयों और खिलौनों का आनंद उठाया। वह अपनी जादुई लहेंगे में बहुत खूबसूरत और प्रियंका चोपड़ा की तरह लग रही थी। वह जादुई लहेंगे में जैसे एक प्रिंसेस दिख रही थी।

    मेले में एक बड़े से अच्छे दिल वाले गरीब लड़के नाम विकास भी आया था। विकास रिया को देखकर उसकी खूबसूरती में खो गया। उसकी आंखों में रिया के प्रति प्यार दिखने लगा।

    विकास ने रिया से मिलने का फैसला किया। वह रिया के पास गया और कहने लगा, "तुम बहुत ही खूबसूरत हो। क्या तुम मेरी दोस्त बनोगी?"

    रिया भी विकास को पसंद करने लगी और उसने खुशी से हाँ कह दी। वे दोनों मिलकर मेले में बहुत मस्ती करने लगे।

    वक्त बीत रहा था और दोनों के बीच दोस्ती में मिठास बढ़ रही थी। रिया अपनी जादुई लहेंगे में बहुत खुश थी और उसे विकास को दिखाने में बहुत मज़ा कर रही थी। विकास भी रिया के साथ बहुत खुश था और उसे बहुत सम्मान करता था।

    एक दिन, मेले में दोनों ने एक मग़रमच्छ वाले स्टॉल पर ख़ास आकर्षण देखा। वे वहाँ गए और मग़रमच्छों के साथ खेलने का मज़ा लेने लगे। उस दिन, रिया अपनी जादुई लहेंगे में बहुत खुश थी और विकास के साथ समय बिता रही थी। वे दोनों मग़रमच्छों के साथ मस्ती करने में लगे रहे।

    मग़रमच्छों के साथ खेलने से रिया की लहेंगे की रंगत बिलकुल बदल गई और वह अब नहीं चमकदार और सुंदर दिख रही थी। विकास रिया के साथ होने वाले परिवर्तन को देख गया और उसने दिल में जाने का फैसला किया।

    विकास ने रिया को समझाया, "तुम बिलकुल खूबसूरत हो, फिर भी मग़रमच्छों के साथ खेलते हुए तुम और भी सुंदर और आकर्षक लगती हो। इस जादुई लहेंगे के साथ तुम्हें खुश और प्यारी दिखने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

    रिया ने विकास की बातों को समझा और अपनी जादुई लहेंगे को दानवत बना दिया। वे दोनों मेले के आनंद का मज़ा लेते रहे और उनकी दोस्ती और प्यार दिन प्रतिदिन बढ़ता गया।

    इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि वास्तविक सौंदर्य और खूबसूरती व्यक्ति के अंदर होती है, जिसे बस देखने की ज़रूरत है। जादुई लहेंगे और बाहरी खूबसूरती तो अपने आप में एक अच्छा सा अनुभव हो सकता है, लेकिन असली सौंदर्य हमारे स्वभाव, कार्य-धारा, और दिल के भावों में होता है।


    पानीपूरी वाला 

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    एक छोटे से गांव में एक गरीब परिवार रहता था। इस परिवार के पास बहुत कम धन था और वे अपनी रोजी-रोटी के लिए हर दिन बड़ी मेहनत से काम करते थे। परिवार का छोटा सा सदस्य रमेश भी उसी मेहनती और संवेदनशील परिवार का हिस्सा था।

    एक दिन, रमेश की माँ बहुत बीमार पड़ गई। उसे तुरंत डॉक्टर की ज़रूरत थी, लेकिन गरीबी के कारण वे उसे अच्छे इलाज के लिए पैसे नहीं दे सकते थे। रमेश बहुत चिंतित हो गया और उसे अपनी माँ को इलाज के लिए पानी पूरी बेचने का फैसला करना पड़ा।

    वह पूरी बेचने लगा और लोग उसकी मदद करने आने लगे। रमेश ने बहुत मेहनत से पैसे इकट्ठे किए और उसे अपनी माँ के इलाज के लिए डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर ने इलाज किया और रमेश की माँ ठीक हो गई।

    रमेश ने अपनी माँ की ख़ुशी देखकर खुद भी बहुत खुश हुआ। उसने देखा कि उसके पड़ोस में एक बुजुर्ग औरत रोज़ाना पानी पूरी खाती थी, लेकिन उसके पास भी धन की कमी थी। रमेश ने सोचा कि उस बुजुर्ग औरत को भी अपनी माँ की तरह अच्छा इलाज मिलना चाहिए।

    उसने फिर से पानी पूरी बेचने का काम शुरू किया और उसके पड़ोसी औरत की मदद करने लगा। लोग उसकी मदद करने आने लगे और उसके पड़ोस में एक पढ़े-लिखे व्यक्ति ने उसे भी अपने व्यापार में सहायता देने का वचन दिया।

    रमेश ने बहुत मेहनत से पैसे इकट्ठे किए और बुजुर्ग औरत को अच्छे इलाज के लिए डॉक्टर के पास ले गया। उसे उचित इलाज मिला और वह भी ठीक हो गई।

    रमेश ने अपनी मेहनत और समर्पण से दो लोगों को ख़ुश किया और उसका धनिक हो जाना भी उसे बड़ी ख़ुशी देता था। उसके पड़ोसी औरत ने उसे बहुत दुआएँ दीं और उसकी माँ भी उसकी समझदारी और सहानुभूति से बहुत प्रशंसा की।

    इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि धन की कमी होने से हमें निराश नहीं होना चाहिए। अगर हम मेहनती हैं और सच्चे मन से दूसरों की मदद करते हैं, तो हम खुद भी धनिक हो सकते हैं और दूसरों को भी समृद्धि मिल सकती है।


    लकड़ी की साईकल

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    एक छोटे से गांव में राजू नामक एक छोटे से लड़के रहता था। राजू के पास साइकल न होने की वजह से वह हमेशा दूसरे बच्चों को साइकल पर घूमते हुए देखता रहता था और दिल बहुत ख़ुश हो जाता था। वह भी चाहता था कि उसके पास भी एक साइकल हो।

    एक दिन, राजू जंगल में खेल रहा था। वह वहां चला जाता है तो उसे एक चमकदार लकड़ी के पेड़ का पता चला। जैसे ही वह पेड़ के पास पहुंचा, वह अचानक एक जादुई आवाज़ सुनाई दी। "अरे राजू, मैं तेरी इच्छा पूरी करूँगा।"

    राजू हैरान हो गया क्योंकि उसे नहीं लगा था कि उस आवाज़ की सच्चाई हो सकती है। फिर भी उसने साहस करके कहा, "मैं चाहता हूँ कि मेरे पास भी एक साइकल हो।"

    आवाज़ ने कहा, "तेरी इच्छा पूरी होती है।" और जैसे ही राजू अपनी आंखें खोला, उसने देखा कि एक चमकदार साइकल उसके सामने खड़ी है। राजू को बहुत ख़ुशी हुई और उसने साइकल पर बैठकर घूमना शुरू कर दिया।

    राजू ने उस साइकल का आनंद उठाया और उसे देखकर अपने दोस्तों को भी बताया। सभी बच्चे बहुत ख़ुश हो गए और उन्होंने राजू को बधाई दी।

    राजू अब हर दिन साइकल पर घूमता और उसकी ख़ुशी की देखते हुए उसके माँ-पापा भी बहुत ख़ुश हुए। उस जादुई लकड़ी के आशीर्वाद से राजू के जीवन में ख़ुशियाँ और समृद्धि आ गई।

    इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि अगर हमारी इच्छा सच्ची हो और हम अपने सपनों को पूरी शिद्दत से प्राप्त करने के लिए मेहनत करते हैं, तो विश्वास मानो, ज़िंदगी हमें वह सब कुछ दे सकती है जो हम चाहते हैं।


    छोले भटूरे वाला 

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    एक छोटे से गांव में एक लालची छोले भटूरे वाला रहता था। उसके पास एक छोटा सा दुकान था और वह रोज़ाना अपने दुकान पर बड़ी बड़ी मिश्री भरी छोले भटूरे बनाकर बेचता था। उसके छोले भटूरे की मिश्री और ख़ास मसालों से उन्हें खाने का स्वाद अद्भुत था और वह लोगों को चारों ओर से खींचता था।

    एक दिन, उसके दुकान पर एक साधू बाबा आये। उस साधू बाबा को देखकर छोले भटूरे वाला ने अपने दुकान पर छोटी सी परेशानी का एहसास किया। वह सोचने लगा, "यह साधू बाबा मुझे शायद कुछ माँगने आए हैं। मुझे कुछ ख़र्चीले समय के लिए दुकान बंद करना पड़ेगा।"

    छोले भटूरे वाला ने दुकान बंद करने की सोची और जल्दबाज़ी में बाबा को दुकान में बुलाया। बाबा ने देखा कि छोले भटूरे वाला चिंतित और परेशान दिख रहा है। उसने प्यार से पूछा, "बेटा, आप इतने परेशान क्यों हो रहे हो?"

    छोले भटूरे वाला ने आत्म-विश्वास से बाबा को बताया, "बाबा, मैं चिंता कर रहा हूँ कि आपने कुछ माँगने आया होगा और मुझे दुकान बंद करनी पड़ेगी। अगर दुकान बंद हो गई, तो मुझे कई ग्राहकों का नुकसान होगा।"

    बाबा ने प्यार से हँसते हुए कहा, "बेटा, तुम चिंता न करो। मैंने तुमसे कुछ नहीं माँगा है। मेरे पास तो सिर्फ एक सवाल का जवाब देना है।"

    छोले भटूरे वाला आश्चर्यचकित था। उसने बाबा को पूछा, "कौन सा सवाल है, बाबा?"

    बाबा ने कहा, "मैं तुमसे सिर्फ इतना जानना चाहता हूँ कि तुम अपने सारे ग्राहकों को भला और स्वस्थ खिलाते हो या नहीं? क्या तुम उनकी सेवा करने के लिए खुद को समर्पित करते हो?"

    छोले भटूरे वाला ने आत्मविश्वासपूर्वक कहा, "जी हाँ, बाबा, मैं अपने सभी ग्राहकों की सेवा करने के लिए समर्पित हूँ। मेरा मकसद है कि उन्हें सबसे अच्छी ख़िलाई मिले।"

    बाबा ने अपना हाथ उसके सिर पर रखा और कहा, "बेटा, तुम्हारी सच्ची सेवा की प्रतिबद्धता और आपसी सद्भाव के कारण ही तुम्हारी दुकान की सफलता है। मैं तुम्हें एक जादुई वरदान दूंगा। अब से आगे, जब भी तुम अपनी सभी ग्राहकों को ख़िलाने के लिए छोले भटूरे बनाओगे, तो उन्हें तुरंत ही सेवा कर दोगे। और देखो, तुम्हारी दुकान की क़िस्मत चमकने लगेगी।"

    छोले भटूरे वाला बाबा के वचन पर विश्वास करते हुए वापस अपनी दुकान पर लग गया। अब उसने अपने ग्राहकों की सेवा को अपनी पहली प्राथमिकता बना दिया। वह दिन-रात मेहनत करके अपने छोले भटूरे की मिश्री और स्वाद को और भी अच्छा बना ने लगा। उसकी सभी ग्राहकें बढ़ते हुए और लालची होकर उसके छोले भटूरे खाने के लिए खड़ी हो जाती थीं।

    जैसे ही उसने बाबा के वचनों का पालन किया, उसकी दुकान की सफलता चमकने लगी। वह अब धनिक और समृद्ध हो गया और उसे लालचीता का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता था। वह हर वर्ष गरीब लोगों को अपनी कमाई से भोजन खिलाने लगा और सभी लोग उसकी दयालुता और दानशीलता की सराहना करते थे।

    इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि लालच करने से हमारा कल्याण नहीं होता है। बल्कि अपनी सभी ग्राहकों की सेवा करने से हमारी सफलता और समृद्धि मिलती है। दूसरों की मदद करने से हमारे जीवन में खुशियाँ और समृद्धि आती है, जो लालच के बाद नहीं आ सकती।


    सोने के कंबल वाला 

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    एक छोटे से गांव में एक आदमी रहता था जिसका नाम गोपाल था। वह अपने गांव के पास एक छोटे से दुकान पर जादुई सोने के कंबल बेचने का व्यापार करता था। उसके पास एक बहुत ही खास जादूई सोने का कंबल था जिसके धनी रंग और चमक को देखकर लोग उसे खरीदने के लिए पागल हो जाते थे।

    एक दिन, गोपाल दुकान पर अपने सारे जादूई सोने के कंबल रखकर गांव के बाजार में जा रहा था। उसने सोचा, "इस बार मैं अपने जादूई सोने के कंबल को इतने महंगे दर पर बेचूंगा कि मुझे अच्छी कमाई मिल जाएगी।"

    वह बाजार में अपने कंबलों को दिखाने लगा और लोग उन्हें देखकर हैरान और चमत्कारी देखते थे। एक धनी व्यापारी ने भी उसके दुकान में आकर एक जादूई सोने के कंबल को खरीदने की इच्छा जताई। गोपाल ने उसको बहुत महंगे दर पर बेचने का फैसला किया।

    व्यापारी ने गोपाल से पूछा, "इतने महंगे दर पर तुम इस कंबल को क्यों बेच रहे हो?"

    गोपाल ने अपनी चालाकी से कहा, "इसका विशेष गुण है कि यह सोने की दुकान में नहीं, ख़ास और जादूई दुकान में बिकता है। यह जादूई कंबल सोने की चीज़ से भी कीमती है। इसमें जादू है जो उसके धारके की सभी ख़ुशियाँ पूरी कर सकता है। जो भी इसे खरीदता है, उसे एक महीने में सभी इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं।"

    धनी व्यापारी ने यह सुनकर जादूई सोने के कंबल को खरीद लिया। वह खुशी-खुशी गोपाल को ख़रीदने के लिए अगले महीने का भी आदेश दे गया।
    एमपीबीपी

    गोपाल को बहुत ख़ुशी हुई कि उसने अपने जादूई सोने के कंबल को बेच दिया और उसे एक अच्छी कमाई मिली। लेकिन वह अपने जादूई सोने के कंबल को बेचकर अब भी दुखी रहता था क्योंकि वह समझता था कि असली जादू उसके अच्छे करतबों, सेवा और दया में है। वह जानता था कि सच्चा सोना हमारे अंदर के अच्छे गुणों में होता है और हमें दूसरों की मदद करने में खुशी मिलती है।


    जादुई मकई का हवाईजहाज 

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    गर्मियों के दिन थे। छोटे से गांव में रहने वाले रामू नामक एक छोटे से लड़के को बहुत पसंद था हवाई जहाज देखना। वह रोज़ाना खेत में काम करते समय ऊपर देखकर उड़ने वाले हवाई जहाज को नज़रंदाज़ करता था।

    रामू के माँ-पापा बहुत गरीब थे। उनके पास अधिक पैसे नहीं थे, लेकिन उन्होंने रामू को सब कुछ प्यार से देने का प्रयास किया। रामू की माँ उसे रोज़ाना सुबह खेत भेजती और कहती, "रामू, तू ध्यान रखना कि खेत में सब कुछ ठीक-ठाक हो जाए। मैं तुझे घर वापस आने तक अच्छे भोजन से रखूंगी।"

    रामू बहुत प्यारे स्वभाव के लड़का था। उसका दिल बड़ा ही सच्चा था। वह हमेशा चाहता था कि एक दिन उसे भी हवाई जहाज में उड़ने का मौक़ा मिले। लेकिन वह जानता था कि उसके पास इतने पैसे नहीं हैं जो उसे हवाई जहाज का टिकट ख़रीदने में मदद करें।

    एक दिन, गांव में एक सांता नामक व्यापारी आया। उसके पास बहुत सारी भुट्टे की दुकानें थीं और वह अपने भुट्टे को आसमान की ऊँचाइयों तक उड़ाकर दिखाता। रामू ने देखा और बड़े दिल से एक हवाई जहाज में खुद को सोचा।

    सांता ने देखा कि रामू उड़ने वाले हवाई जहाज की तरफ तेजी से देख रहा है। उसने रामू से पूछा, "क्या तुम भी एक बार हवाई जहाज में उड़ना चाहते हो?"

    रामू ने खुशी से सारा सच बता दिया, "जी हाँ, मैं भी एक बार हवाई जहाज में उड़ना चाहता हूँ, पर मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं।"

    सांता ने रामू का हाथ पकड़ा और कहा, "तुम चिंता मत करो। मैं तुम्हारे सपने को साकार करने के लिए तुम्हारे साथ हूँ। मैं तुम्हें एक हवाई जहाज की सवारी देता हूँ और तुम उसे खूब मजे से उड़ते हुए देखो।"

    रामू को ख़ुशी के आंसू आ गए। उसने सांता का धन्यवाद किया और बड़ी ख़ुशी से हवाई जहाज में सवारी कर ली। वह ऊपर की ऊँचाइयों तक उड़ रहा था और उसकी खुशी की कोई हद नहीं थी।

    रामू के वापस आने पर सांता ने उससे पूछा, "कैसी रही तुम्हारी उड़ान?"

    रामू ने खुशी से कहा, "आपकी वजह से मेरी उड़ान बहुत अच्छी थी! मैंने आज अपने सपने को साकार कर लिया है।"

    सांता ने कहा, "तुम देखो, रामू, सच्चे दिल से जो चाहोगे, वह पूरी हो जाएगा। तुम देखते रहना, एक दिन तुम खुद के हवाई जहाज में उड़ोगे।"

    रामू ने दिल से धन्यवाद किया और उसने देखा कि उसका सपना पूरा हो गया है। उसके दिल में ख़ुशी का एहसास था और उसने सोचा, "मैंने जिस तरह से सांता जी की मदद की, उसी तरह से मैं भी अगर दूसरों की मदद करूंगा, तो शायद मेरे सपने और भी तेजी से पूरे होंगे।"

    इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि एक छोटे से गरीब बच्चे के दिल में भी बड़े-बड़े सपने होते हैं और उसे उन सपनों को साकार करने के लिए सही दिशा में प्रेरित किया जा सकता है। दूसरों की मदद करके हम भी अपने जीवन को खुशियों से भर सकते हैं और अच्छे कर्मों के जरिए दूसरों की मदद करके हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं।

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