आज की इस पोस्ट मे आप पढ़ने वाले है जादुई मजेदार कहानियां और उस के साथ साथ जादुई कहानियां भी क्यूंकी ऐसी ही jadui kahaniya in hindi पढ्न बच्चो को बहुत अच्छा लगता है और ऐसी ही जादुई दुनिया की जादुई कहानियां आपको इस आर्टिक्ल मे पढ़ने को मिलने वाली है तो चलिये शुरू करते है जादुई मजेदार कहानियां
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गरीब का जादुई टिफिन ( जादुई कहानी )
एक छोटे से गांव में महेश नाम का एक आदमी करता था वह दिन भर हाथ की चक्की चलाता और अपने घर चलाता था
1 दिन एक औरत उसके पास आई और कहीं यह लो 12 किलो हटाए मुझे शाम तक पैसा कर दे देना इसके कितने रुपए हुए महेश करते हैं ₹120।
इसी तरह महेश दिनभर हाथ से चक्की चलाता था और अपने घर की जरूरतों को पूरा करता था एक दिन जब वो काम से घर गया तो उसके बीवी का उसे करने लगी कि मेरी जिंदगी तो आपने बर्बाद करदी है।
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दिन भर चक्कर चलाने के बाद भी तुम इतने से ही पैसे जुटा पाते हैं जिससे हमारी अच्छे से जरूरतें भी पूरी नहीं हो सकती मुझे भी फटी पुरानी साड़ी पहननी पड़ती है और तुम भी इतने फटे पुराने कपड़े पहनते हो हम दोनों का तो छोड़ो हमारी बीटी भी बेचारी किसी चीज की मांग नहीं करती हमारी गरीबी को देखकर।
यह सुनकर महेश होता है अभी पति घर आया है उसे चाय पानी का पूछने की वजह तुम ही तानी सुना रही हो यह तो तुम्हारा तो रोज का हो गया है यह सुनकर उसे भी पीती है कहां तुम बड़े अंबानी की औलाद हो ना कि मैं तुम्हें आई बरोबर चाय पानी का पूछो यह सुनकर उसकी बेटी महेश को एक गिलास पानी देती है।
महेश पानी पीता है और गुस्से से बाहर चला जाता है दूसरे दिन जब महेश अपनी दुकान में जाता है आटा पीसने के लिए एक बड़ा सा वहां बवंडर आता है और बवंडर पूरे आटे को उड़ा कर ले जाता है यह देखकर महेश बहुत ही चौक जाता है और उस बवंडर के पीछे भागते हैं और कहते हैं कि मेरा आटा वापस लौटा दो।
यह सुनकर बवंडर में से एक औरत कहती है मैं बवंडर हूं और मैंने तुम्हारा पूरा आटा उड़ा दी हो यह सुनकर मुझे श्वेता है अरे तुम तो बोल पड़े बवंडर वैसे वह औरत कहती है हां मैं जादू ही बंदर हूं इस उनका नहीं चाहता है मेहरबानी करके मेरा हटा वापस हटा दो नहीं तो मेरे ग्राहक मुझे वह आटा वापस मांगेंगे और मैं उन्हें हुआ था पैसे वापस दूंगा।
यह सुनकर बवंडर कहती है ठीक है वह तो आटा उड़ गया लेकिन यह एक टिफिन रखो यह टिफिन जादुई है जब भी तुम इस टिफिन से कुछ मांगेंगे वो इस में आ जाएगा यह कह कर वह बवंडर महेश को वह टिफिन दे देती है।
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महेश खुशी-खुशी अपने घर जाते हैं लेकिन जब घर पहुंचता है तो उसके बीवी की सहेली प्रिया भी वहां मौजूद थे प्रिय दिखती है कि महेश के हाथ में एक पीतल का टिफिन है यह देखकर वह सोचती है कि इस गरीब भिखारी के पास पीतल का टिफिन कहां से आया जैसे ही प्रिया को टिफिन दिखती है महेश को टिफिन पीछे छुपा लेता है यह देखकर प्रिया वहां से चली जाती है।
और बाहर खिड़की से झांक कर देती है कि महेश स्पीकिंग से क्या कर रहा है महेश बड़ी की खुशी में अपनी बीवी से डरते हैं देखो यह एक जादुई टिफिन है हम जो भी से मांगोगे वह यह हमें देगा और वह टिफिन से लड़ता है एक टिफिन मुझे एक टिफिन भरकर हटा दे यह कहते ही टिफिन में से आटा निकलने लगता है यह देख कर उसकी बीवी बहुत खुश हो जाती।
लेकिन यह सब बात उसके बीवी के सहेली प्रिया भी खिड़कियों से झांक कर देख रही होती है और जब दूसरे दिन महेश अपने काम पर जाता है और उसकी बीवी उसके बच्चे को छोड़ने स्कूल जाती है तभी प्रिया वहां जाती है और वह टिफिन चुरा लेती है उसके बदले 1 वैसे ही दिखने वाला टिफिन यहां रख देती है।
महेश जब टिफिन से कहता है कि मुझे एक टिफिन चावल दो तो जब टिफिन कुछ देता ही नहीं फिर यह देखकर महेश बहुत ही गुस्सा होता है और जंगल में जाकर बवंडर से कहता है कि तुमने मुझे यह कैसा टिफिन दिया इसका जादू तो एक ही दिन रहा और 1 दिन के बाद तो यह काम ही नहीं कर रहा यह देखकर बवंडर कहती है यह वह टिफिन नहीं जो मैंने तुम्हें दिया है यह सुनकर महेश कहता है मुझे दूसरों की फिल्म चाहिए।
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बवंडर अब उसे पहले से बड़ा टिकट देती है यह टिफिन लेकर महीने घर जाता है लेकिन घर जाते हुए प्रिया उसे वापस से देख लेती है और जब वह घर जाता है तो उसे बीवी से कहता है यह देखो आज मैं उससे भी बड़ा टिफिन लाया हूं बताओ तुम आज क्या लूंगी उसकी बीवी कहती है मुझे बिरयानी खाने का बहुत मन हो रहा है यह कहते हैं महेश उसके किन को करता है दिल जाने दो और उस टिफिन में से बिरयानी निकल आती है।
लेकिन और जब उस घर में कोई नहीं होता तो प्रिया चुपके से आती है और टिफिन बदल देती है उसकी जगह नकली टिफिन रख देती है फिर महेश जब उत्पन्न से कहता है कि आटा निकाल तो उसमें से हटा नहीं निकलता महेश और गुस्सा हो जाता है और बवंडर के पास जाता है और कहता है तुम मुझे यह कैसा टिफिन दे रही हो जो एक ही दिन काम करता है।
बवंडर इस टिफिन देखती है करो समझ जाती है कि यह उसका टिफिन नहीं है। अब उसे एक घंटा देती है और कहती है कि जाओ यह डंडा अपने घर में रख दो और जब कोई छोड़ तुम्हें देखे तुझे झंडे को कहो कि उसे मारो यह डंडा जिस चोर को मारेगा समझ लो तुम्हारे पहले की दो टिफिन भी उसे चोर ने चुराए हैं।
यह सुनकर महेश को डंडा लेता है और अपने घर में ले जाकर रख देता है और जब उसकी सहेली प्रिया दिखती है कि महेश ने एक डंडा लाया है तो वह समझती है कि यह भी शायद जादुई डंडा होंगा। वह उसको भी चुराने उसके घर जाती है।
लेकिन इतने में महेश आ जाता है और कहता है हाय जादुई डंडे चोरों को पकड़ और डंडा प्रिया को मारने लगता है यह देखकर नहीं से बीवी कहती है तुम मेरी सहेली होकर मेरे घर में चोरी करती हो प्रिया कहती है नहीं नहीं अब से मैं चोरी नहीं करूंगी।
महेश कहता है हमारे पहले को दो डंडे ला कर दो वरना ये डंडा ऐसे ही मारता रहेगा। प्रिया भागते हुए अपने घर जाती है और घर से दो टिफिन लेकर आती है वह टिफिन लेने के बाद महेश कहता है ।
ए डंडे रुक जा और वो डंडा रुक जाता है और प्रिया वहा से भाग जाती है अब महेश के पास दो दो टिफिन हो जाते है और अब वह दोनों जादुई टिफिन से अपनी जिंदगी आसानी से गुजारता है।
एक जादुई पत्थर
जादुई मजेदार कहानियां
एक बार की बात है एक गांव में ज्ञानचंद नाम का एक आदमी रहा करता था वह बहुत ही ज्ञानी था लेकिन गरीबों की वजह से वह कुछ नहीं कर पता था उसके दो बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी गांव में कोई काम धंधा नहीं होने की वजह से वह बहुत गरीबी में जिंदगी में गुजर रहे थे।
एक दिन शाम को जब ज्ञानचंद घर जाता है तो उसकी बीवी कहती है हमें अभी यहां से निकाल कर शहर जाना चाहिए मैंने सुना है शहर में बहुत काम धंधा होता है जिससे हमें इतनी गरीबी की जिंदगी नहीं गुजारनी पड़ेगी।
ज्ञानचंद कहता है ठीक है तुम सही कह रही हो हमें शहर जाना चाहिए लेकिन यह कहने के बाद ज्ञानचंद कहता है हमारे पास तो शहर जाने तक के पैसे नहीं है हम कैसे जाएंगे तब उसकी बीवी कहती है हम जंगल के रास्ते से शहर जाएंगे रास्ता भी काम पड़ेगा और हम जल्दी से शहर पहुंच जाएंगे वह भी पैदल पैदल।
ज्ञानचंद अपनी बीवी और दो बच्चों के साथ शहर की ओर चल पड़ता है जंगल के रास्ते से चलते-चलते वह बहुत थक जाते हैं और बच्चे कहते हैं कि हम बहुत थक गए और हमें भूख भी लग गई है।
यह सुनने के बाद ज्ञानचंद देखा है कि जंगल में एक पुराना मंदिर था वह मंदिर के पास बैठकर सभी लोग खाना खाते हैं। और खाना खाने के बाद ज्ञानचंद के दोनों बच्चे हाथ धोने के लिए नदी में जाते हैं और तभी हाथ धोते-धोते ज्ञानचंद के बेटे को हाथ में कुछ ठंडा-ठंडा लगता है।
वह जैसे ही वह निकलता है वह एक पत्थर होता है वह लड़का देखा है कि यह पत्थर तो बहुत ठंडा है वह पत्थर लेकर वह अपनी जेब में रख लेता है।
और जैसे ही वह आगे बढ़ते हैं दो शेर आ जाते हैं और दोनों भी उन्हें घेर लेते हैं यह देखकर ज्ञानचंद और उसकी बीवी बहुत ही डर जाती है और ज्ञानचंद की बीवी मन्नत मानती है कि अगर हम यह इन शेर से बच गए तो मैं इस मंदिर में हर सोमवार को आऊंगी।
लेकिन ज्ञानचंद का बेटा जिसके पास जादुई पत्थर था वह शेर को उठा उठा कर पटक देता है और उन्हें लातों और घुसो से मारता है इसके बाद शेर वहां से भाग जाते हैं।
यह देखकर ज्ञानचंद समझता है कि यह कोई कुदरत का चमत्कार है और इसके बाद वह शहर की तरफ बढ़ने लगते हैं लेकिन जैसे ही वह आगे बढ़ते हैं वह देखते हैं कि वह बहुत सारे डाकू है और उन्होंने एक सेट को और उनकी बेटी को पेड़ से बांध कर रखा है।
यह देखकर ज्ञानचंद बहुत डर जाता है लेकिन डाकू की नजर उन पर पड़ती है तो डाकू ज्ञानचंद और उसके परिवार को भी पेड़ से बांध देते हैं और उस सेठ से कहते है की अभी तक तुम्हारा कोई आदमी 5 करोड़ रुपए ले कर नही आया है।
अगर मुझे आधे घंटे के अंदर पैसे नहीं मिले तो मैं तुम्हें और तुम्हारी बेटी को जान से मार दूंगा यह सुनकर सेट करता है नहीं नहीं वह जल्दी आ जाएगा और इसके बाद सेट का आदमी 5 करोड रुपए लेकर जंगल में आता है और डाकू को दे देता है।
डाकू अपने आदमी से बात करता है कि अगर हमने इन्हें छोड़ दिया तो यह पुलिस को बता देंगे और हम पकड़े जाएंगे हमें पैसे तो मिल गए हैं लेकिन हम इन सब को जान से मार देंगे यह बात ज्ञानचंद का बेटा सुन लेता है और वह अपनी पूरी ताकत से रस्सी को तोड़ देता है और सभी डाकुओं को मार गिराता है और सभी को बेहोश कर देता है।
और फिर ज्ञानचंद का परिवार और वह सेट पुलिस स्टेशन जाते हैं और डाकुओं के बारे में बताते हैं प्लीज उन डाकुओं को पड़कर जेल में रख लेते हैं।
वह सेट ज्ञानचंद से बहुत खुश हो जाता है और उन्हें रहने के लिए एक घर दे देता है ज्ञानचंद को बहुत खुशी होती है कि शहर में रहने के लिए उसे एक घर मिल गया है।
थोड़े दिन गुजरते हैं लेकिन ज्ञानचंद को शहर में कोई काम नहीं मिलता है यह देखकर वह और भी नाराज हो जाता है और बहुत ही दुखी हो जाता है।
एक दिन ज्ञानचंद की पत्नी उससे कहती है कि मैं जंगल में सोमवार का व्रत रखा था कि अगर मैं शेर से बच गई मेरा परिवार शेर से बच गया तो हम सोमवार को मंदिर में जाएंगे तो कल सोमवार है तो हम मंदिर में चलते हैं यह सुनकर ज्ञानचंद कहता है ठीक है हम कल मंदिर में जाएंगे।
अगले दिन जब ज्ञानचंद और उसके बच्चे और उसकी बीवी जंगल के उस मंदिर में जाने के लिए घर से निकलते हैं और जंगल में पहुंचकर ज्ञानचंद के बेटे का पैर फिसल जाता है और वह एक पेड़ से लटक जाता है।
और उसके वजन की वजह से पेड़ नीचे से उखड़ जाता है और पेड़ के नीचे से बहुत सारे सोने के हीरे जवारत निकलते हैं यह देखकर ज्ञानचंद कहता है कि लगता है डाकू अपना लूटा हुआ माल इसी पेड़ के नीचे छुपाते थे चलो यह हमारे तो काम आ जाएगा।
ज्ञानचंद और उसका परिवार पूरा सोना जावरा अपने हथेली में भरते हैं और घर की तरफ रवाना होते हैं लेकिन ज्ञानचंद का बेटा देखा है कि जादुई पत्थर उसके जेब में नहीं है यह देखकर वह बहुत ही डर जाता है और अपने पिता से कहता है कि जादुई पत्थर मेरे पास नहीं है ज्ञानचंद कहता है बेटा अब शायद यह पत्थर किसी जरूरतमंद के पास चला गया है जाने दो हमारे पास तो इतना सारा खजाना आ गया है अब हमें उसे पत्थर की कोई जरूरत नहीं है।
ज्ञानचंद उन पैसों से एक नया घर खरीदता है और एक नई होटल खोलता है
और खुशी-खुशी अपनी जिंदगी गुजारता है।
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